कबीरवाणी
गुरु मिला तब जानिये, मिटे मोह तन ताप ।। | हरष शोक व्याप नहीं, तब गुरु आपै आप ।।।
सांई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय। । मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय ।।
एक ही साधै सब सधै, सब साधै सब जाय।। । माली सीचे मूल को, फूलै फलै अघाय !!
जो जाको गुन जानता, सो ताको गुन लेत।।
कोयल आमहि खात है, काग निंबोरी लेत।
कीया कछ न होते है, अनकीया ही होय।।
कीया जो कछू होत तो, करता औरे कोय ॥
आसा तो गुरुदेव की, दूजी आस निरास।
पानी में घर मीन का, सो क्यों मरै पियास ॥
गुरु कीजै जानि के, पानी पीजै छानि। - बिना विचारै गुरु करै, पड़े चौरासि खानि ॥
जैसी करनी जासु की, तैसी भुगतै सोय।। बिन सतगुरु की भक्ति के, जनम जनम दुख होय
No comments:
Post a Comment
thnx for comment