कर नैनो दीदार महल में प्यारा है कबीर साहिब
कर नैनो दीदार महल में प्यारा है ||
कर नैनों दीदार महलमें प्यारा है।।टेक।।। काम क्रोध मद लोभ बिसारो , शील सँतोष क्षमा सत धारो।। मट मांस मिथ्या तजि डारो , हो जाने घोडै असवार , भरम से न्यारा है।
पद सूर एक घर लाओ , सुषमन सेती ध्यान लगाओ। तिरबेनीके संधि समाओ , भौर उतर चल पारा है।।
घटा शंख सुनो धुन दोई , सहस्र कमल दल जगमग होई। ता मध करता निरखो सोई , बंकनाल धस पारा है।।
धोती नेती बस्ती पाओ , आसन पदम जुगतसे लाओ।। कुम्भक कर रेचक करवाओ , पहिले मूल सुधार कारज हो सारा है।
डाकिनी शाकनी बह किलकारे , जम किंकर धर्म दूत हकारे। सतनाम सुन भागे सारें , जब सतगुरु नाम उचारा है।।
मूल कँवल दल चतूर बखानो , किलियम जाप लाल रंग मानो।। गगन मॅडल बिच उर्धमुख कुइया , गुरुमुख साधू भर भर पीया। देव गनेश तहँ रोपा थानो , रिद्धि सिद्धि चँवर ढुलारा है।
निगुरो प्यास मरे बिन कीया , जाके हिये अँधियारा है। 1
स्वाद चक्र षटदल विस्तारो , ब्रह्म सावित्री रूप निहारो। उलटि नागिनी का सिर मारो , तहाँ शब्द ओंकारा है।।
त्रिकुटी महलमें विद्या सारा , धनहर गरजे बजे नगारा। लाल बरन सूरज उजियारा , चतूर दलकमल मंझार शब्द ओंकारा है।
नाभी अष्ट कमल दल साजा , सेत सिंहासन बिष्णु बिराजा।। हरियम् जाप तासु मुख गाजा , लछमी शिव आधारा है।।
साध सोई जिन यह गढ लीनहा , नौ दरवाजे परगट चीन्हा। दसवाँ खोल जाय जिन दीन्हा , जहाँ कुलुफ रहा मारा है।
ट्वादश कमल हृदयेके माहीं , जंग गौर शिव ध्यान लगाई। सोहं शब्द तहाँ धुन छाई , गन करै जैजैकारा है।।
आगे सेत सुन्न है भाई , मानसरोवर पैठि अन्हाई। हंसन मिलि हंसा होई जाई , मिलै जो अमी अहारा है।।
षोड्श कमल कंठ के माहीं , तेही मध बसे अविद्या बाई। हरि हर ब्रह्म चंवर दुराई , जहँ श्रीयम् नाम उचारा है।।
किंगरी सारंग बजै सितारा , क्षर ब्रह्म सुन्न दरबारा।
द्वादस भानु हंस उँजियारा , षट दल कमल मॅझार शब्द ररंकारा है।।
तापर कंज कमल है भाई , बग भौंरा दुइ रूप लखाई। निज मन करत वहाँ ठकुराई , सो नैनन पिछवारा है।। कमलन भेद किया निर्वारा , यह सब रचना पिंड मॅझारा।। सतसँग कर सतगुरु शिर धारा , वह सतनाम उचारा है।।
महा सुन्न सिंध बिषमी घाटी , बिन सतगुरु पार्वे नहिं बाटी। व्याघर सिहं सरप बहु काटी , तहँ सहज अचिंत पसारा । है।।
आँख कान मुख बन्द कराओ , अनहद झिंगा शब्द सुनाओ। दोनों तिल इक तार मिलाओ , तब देखो गुलजारा है।।
अष्टदल कमल पारब्रह्म भाई , दहिने द्वादश अंचित रहाई। बायें दस दल सहज समाई , यो कमलन निरवारा है।।
पाँच ब्रह्म पांचों अॅड बीनो , पाँच ब्रह्म निःअच्छर चीन्हों।। चार मुकाम गुप्त तहँ कीन्हो , जा मध बंदीवान पुरुष दरबारा है।।
ब्द बिहगम चाल हमारी , कहैं कबीर सतगुरु दई तारी। खुले कपाट शब्द झनकारी , पिंड अंडके पार सो देश हमाहै।
दो पर्वतके संध निहारो , आँवर गुफा तहां संत पुकारो। हंसा करते केल अपारो , तहाँ गुरन दर्बारा है।
सहस अठासी दीप रचाये , हीरे पन्ने महल जड़ाये। मुरली बजत अखंड सदा ये , हँह सोहं झनकारा है।।
सोहं हद तजी जब भाई , सत्तलोककी हद पुनि आई। उठत सुगंध महा अधिकाई , जाको वार न पारा है।।
बोडस भानु हँसको रूपा , बीना सत धुन बजै अनूपा। हंसा करत चॅवर शिर भूपा , सत्त पुरुष दर्बारा है।।
कोटिन भानु उदय जो होई , एते ही पुनि चंद्र लखोई।। पुरुष रोम सम एक न होई , ऐसा पुरुष दिदारा है।।
आगे अलख लोक है भाई , अलख पुरुषकी तहँ ठकुराई। अरबन सूर रोम सम नाहीं , ऐसा अलख निहारा है।।
ता पर अगम महल इक साजा , अगम पुरुष ताहिको राजा। खरबन सूर रोम इक लाजा , ऐसा अगम अपारा है।।
ता पर अकह लोक है भाई , पुरुष अनामि तहां रहाई। जो पहुँचा जानेगा वाही , कहन सुनन ते न्यारा है।।
काया भेद किया निरुवारा , यह सब रचना पिंड मॅझारा। माया अविगत जाल पसारा , सो कारीगर भारा है।।
आदि माया कीन्ही चतुराई , झूठी बाजी पिंड दिखाई। ' अवाति रचना रची अँड माहीं , ताका प्रतिबिंब डारा है।
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