सत कबीर पूर्ण सतगुरु
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Monday, August 14, 2023
Saturday, December 31, 2022
Sunday, December 25, 2022
Thursday, March 26, 2020
सतगुरु मोहि उतारो भवपार
| सतगुरु मोहि उतारो भवपार।।
तुम बिनु और सुने को मेरी, आरत नाद पुकार।।
गहरी नदिया नाव पुरानी, आय पड़ी मंझधार।
विषय बरियार प्रवल चहु दिशि से, मो पर करत प्रहार।।
विषय बरियार प्रवल चहु दिशि से, मो पर करत प्रहार।।
तात मात सुत बंधु तिरिया, लोग कुटुम्ब परिवार।
अपने अपने स्वारथ कारण, राखत सब व्यवहार।।
अपने अपने स्वारथ कारण, राखत सब व्यवहार।।
नेम धर्म व्रत दान यज्ञ तप, संयम नियम अपार।
इनके फल से स्वर्ग भोगकर, फिर जन्में संसार।।
कृमि कीट पशु पक्षी जलचर, योनिन में कई बार।
भरमि भरमि भटके चौरासी, दुख सहे अगम अपार।।
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जब मैं भूला रे भाई, मेरे सतगुरु युक्ति लखाई।।
क्रिया कर्म आचार मैं छोड़ा, छोड़ा तीरथ नहाना।
सगरी दुनिया भई सयानी, मैं ही एक बौराना।।
ना मैं जानू सेवा बंदगी, ना मैं घंट बजाई।
ना मैं मूरत धरी सिंहासन, ना मैं पुडुप चढ़ाई।।
ना हरि रीझै जप तप कीन्हें, ना काया के जारे।
ना हरि रीझै धोती छाड़े, ना पांचों के मारे।।
दया राखि धर्म को पालै, जग सो रहे उदासी।
अपना सा जीव सबको जानै, ताहि मिलै अविनाशी ।।
सहै कुशब्द वाद को त्यागे, छाड़े गर्व गुमाना।
सत्यनाम ताहि को मिलिहैं, कहहिं कबीर सुजाना।
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जब मैं भूला रे भाई, मेरे सतगुरु युक्ति लखाई।।
क्रिया कर्म आचार मैं छोड़ा, छोड़ा तीरथ नहाना।
सगरी दुनिया भई सयानी, मैं ही एक बौराना।।
ना मैं जानू सेवा बंदगी, ना मैं घंट बजाई।
ना मैं मूरत धरी सिंहासन, ना मैं पुडुप चढ़ाई।।
ना हरि रीझै जप तप कीन्हें, ना काया के जारे।
ना हरि रीझै धोती छाड़े, ना पांचों के मारे।।
दया राखि धर्म को पालै, जग सो रहे उदासी।
अपना सा जीव सबको जानै, ताहि मिलै अविनाशी ।।
सहै कुशब्द वाद को त्यागे, छाड़े गर्व गुमाना।
सत्यनाम ताहि को मिलिहैं, कहहिं कबीर सुजाना।
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गुरु आज्ञा निरखत रहे, जैसे मणिह भुजंग
गुरु आज्ञा निरखत रहे, जैसे मणिह भुजंग
एकहि ब्रह्म और नहिं कोई। सब घट रमा कबीर है सोर्ड। नहीं कबीर नहीं धर्मदासा।अक्षर यक सब घटहि निवासा।। तुम धर्मन सत्य कर मानों। दूजी बात न कछु मन आनो।। बावन अक्षर संग भुलाना। अक्षर आदि को मर्म न जाना।। आदि अक्षर गुरु पारस दीना। पारस छुय तो पारस कीना।। पूरा गुरु हो सोई लखावे। दो अक्षर का भेद बतावे।। एक छुड़ावे एक मिलाबे। तब निःसंख्या निज घर पहुँचावे॥ सो गुरु बंदी छोर कहाबे। बंदी छोड़ के जिव मुक्तावे।।
कैसा है सृष्टि चलाने वाले का कानून? छोटा सा उदाहरण देता हूँ इस पर चिंतन करें। कहा जाता है - सात कुम्भी नरक हैं, पाप करने वालों को वहाँ डाला जाता है। अर्थात् सूक्ष्म-शरीर में 'आत्मा' को उन नरकों में डाला जाता है। इन नरक-कुण्डों में मल-मूत्र कुण्ड, मवाद कुण्ड, रुद्र कुण्ड आदि कुण्डों में जीव असहनीय कष्ट पाता है।
बुरे कर्म करने वालों को, पापियों को धर्मों में यह कह कर डराया जाता है कि वहाँ चोरी करने वालों के हाथ काटे जाते हैं। जो झूठी गवाही देते हैं, उनकी जीभ काटते हैं। शराब पीने वाले को गर्म-गर्म तेल पिलाया जाता है। जो पराई स्त्री की तरफ़ जाते हैं, व्याभिचार करते हैं उनको लोहे की गर्म स्त्री के साथ चिपकाया जाता है। मैं पूछता हूँ ये कैसी धर्म सजायें हैं? ये सजायें संसार में भी अनेक अरब आदि देशों के क्रूर शासकों और कबीलों में प्रचलित हैं। किसी का लड़का चोरी करे तो उसके हाथ काटे जायें तो क्या कहेंगे आप! अभद्र कहा जायेगा। किसी का लड़का और की लडकी सहमति से साथ भाग जायें तो लड़के को गर्म लोहे की स्त्री के साथ चिपकाने की सजा को आप क्या कहेंगे! दारू पीने वाले को कहें कि गर्म तेल पी, तो आप क्या कहेंगे इस सजा को! ये सब अभद्र और क्ररतम ही कहा जाएगा न सभ्य समाज माता ये सजायें कौन दे रहा है? भगवान को मात्मा को दया का सागर कहा जाता है। फिर ये सजायें तो शैतानियत
का सबूत दे रही हैं।
Wednesday, March 4, 2020
Monday, January 20, 2020
Thursday, December 12, 2019
Friday, December 6, 2019
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भक्त
नामदेव जी (Bhagat Namdev Ji)
भूमिका:
परमात्मा
ने सब जीवो को एक – सा जन्म दिया है| माया की कमी या फिर जीवन के धंधो के कारण लोगो तथा कई चालाक पुरुषों ने ऐसी मर्यादा बना दी कि ऊँच – नीच का अन्तर डाल दिया| उसी अन्तर ने करोडों ही प्राणियों को नीचा बताया| परन्तु जो भक्ति करता है वह नीच होते हुए भी पूजा जाता है| भक्ति ही भगवान को अच्छी लगती है| भक्ति रहित ऊँचा जीवन शुद्र का जीवन है|
परिचय:
भक्त
नामदेव जी का जन्म जिला सतार मुंबई गाँव नरसी ब्राह्मणी में कार्तिक सुदी संवत 1327 विक्रमी को हुआ| आपकी माता का नाम गोनाबाई तथा पिता का नाम सेठी था| ये छींबा जाति से सम्बन्ध रखते थे|वे कपड़े धोते व छापते थे| सेठी बहुत ही नेक पुरुष था|वे सदा सच बोलते व कर्म करते रहते थे|
पिता
की नेकी का असर पुत्र पर भी पड़ा| वहा भी साधू संतो के पास बैठता| वह उनसे उपदेश भरे वचन सुनता रहता| उनके गाँव मैं देवता का मन्दिर था| जिसे विरोभा देव का मन्दिर कहा जाता था| वहाँ जाकर लोग बैठते व भजन करते थे| वह भी बच्चो को इकट्ठा करके भजन – कीर्तन करवाता| सभी उसको शुभ बालक कहते थे|
वह
बैरागी और साधू स्वभाव का हो गया| कोई काम काज भी न करता और कभी – कभी काम काज करता हुआ राम यश गाने लगता| एक दिन पिता ने उससे कहा – बेटा कोई काम काज करो| अब काम के बिना गुजारा नहीं हो सकता| कर्म करके ही परिवार को चलाना है| अब तुम्हारा विवाह भी हो चुका है|
“विवाह तो अपने कर दिया” नामदेव बोला| लेकिन मेरा मन तो भक्ति में ही लगा हुआ है| क्या करूँ? जब मन नहीं लगता तो ईश्वर आवाजें मरता रहता है|
बेटा!
भक्ति भी करो| भक्ति करना कोई गलत कार्य नहीं है लेकिन जीवन निर्वाह के लिए रोजी भी जरुरी है| वह भी कमाया करो| ईश्वर रोजी में बरकत डाले गा|
नामदेव
जी की शादी छोटी उम्र में ही हो गई| उनकी पत्नी का नाम राजाबाई था| नामदेव का कर्म – धर्म भक्ति करने को ही लोचता था| पर उनकी पत्नी ने उन्हें व्यापार कार्य में लगा दिया| परन्तु वह असफल रहा|
भाई
गुरदास जी भी फरमाते हैं –
भक्त
नामदेव जी जो जाति से छींबा थे अपना ध्यान प्रभु भक्ति में लगाया हुआ था| एक दिन उच्च जाति के क्षत्रिय व ब्राह्मण मन्दिर में बैठकर प्रभु यश गान कर रहे थे| जब उन्होंने देखा कि निम्न जाति का नामदेव उनके पास बैठ कर प्रभु की भक्ति कर रहा है, तो उन्होंने उसे पकड़कर संगत से उठा दिया| वह देहुरे मन्दिर के पिछले भाग के पास जाकर प्रभु का नाम जपने लगा| भगवान ने ऐसी लीला रची कि देहुरे का मुँह घुमा दिया| यह उस तरफ हो गया जहाँ नामदेव जी बैठे थे| उच्च जाति के लोग यह देखकर हैरान रह गए| प्रभु के दर पर तो निमानो को भी मान मिलता है| प्रभु का प्रेम भी निम्न लोगों की ओर ही जाता है| जैसे नीर नीचे स्थान की ओर बहता है ऊँचाई की तरफ नहीं जाता|
ठाकुर
को दूध पिलाना:
एक
दिन नामदेव जी के पिता किसी काम से बाहर जा रहे थे| उन्होंने नामदेव जी से कहा कि अब उनके स्थान पर वह ठाकुर की सेवा करेंगे जैसे ठाकुर को स्नान कराना, मन्दिर को स्वच्छ रखना व ठाकुर को दूध चढ़ाना| जैसे सारी मर्यादा मैं पूर्ण करता हूँ वैसे तुम भी करना| देखना लापरवाही या आलस्य मत करना नहीं तो ठाकुर जी नाराज हो जाएँगे|
नामदेव
जी ने वैसा ही किया जैसे पिताजी समझाकर गए थे| जब उसने दूध का कटोरा भरकर ठाकुर जी के आगे रखा और हाथ जोड़कर बैठा व देखता रहा कि ठाकुर जी किस तरह दूध पीते हैं? ठाकुर ने दूध कहाँ पीना था? वह तो पत्थर की मूर्ति थे| नामदेव को इस बात का पता नहीं था कि ठाकुर को चम्मच भरकर दूध लगाया जाता व शेष दूध पंडित पी जाते थे| उन्होंने बिनती करनी शुरू की हे प्रभु! मैं तो आपका छोटा सा सेवक हूँ, दूध लेकर आया हूँ कृपा करके इसे ग्रहण कीजिए| भक्त ने अपनी बेचैनी इस प्रकार प्रगट की –
हे
प्रभु! यह दूध मैं कपला गाय से दोह कर लाया हूँ| हे मेरे गोबिंद! यदि आप दूध पी लेंगे तो मेरा मन शांत हो जाएगा नहीं तो पिताजी नाराज़ होंगे| सोने की कटोरी मैंने आपके आगे रखी है| पीए! अवश्य पीए! मैंने कोई पाप नहीं किया| यदि मेरे पिताजी से प्रतिदिन दूध पीते हो तो मुझसे आप क्यों नहीं ले रहे? हे प्रभु! दया करें| पिताजी मुझे पहले ही बुरा व निकम्मा समझते हैं| यदि आज आपने दूध न पिया तो मेरी खैर नहीं| पिताजी मुझे घर से बाहर निकाल देंगे|
जो
कार्य नामदेव के पिता सारी उम्र न कर सके वह कार्य नामदेव ने कर दिया| उस मासूम बच्चे को पंडितो की बईमानी का पता नहीं था| वह ठाकुर जी के आगे मिन्नतें करता रहा| अन्त में प्रभु भक्त की भक्ति पर खिंचे हुए आ गए| पत्थर की मूर्ति द्वारा हँसे| नामदेव ने इसका जिक्र इस प्रकार किया है –
ऐकु
भगतु मेरे हिरदे बसै||
नामे
देखि नराइनु हसै|| (पन्ना ११६३)
एक
भक्त प्रभु के ह्रदय में बस गया| नामदेव को देखकर प्रभु हँस पड़े| हँस कर उन्होंने दोनों हाथ आगे बढाएं और दूध पी लिया| दूध पीकर मूर्ति फिर वैसी ही हो गई|
दूधु
पीआई भगतु घरि गइआ ||
नामे
हरि का दरसनु भइआ|| (पन्ना ११६३ – ६४)
दूध
पिलाकर नामदेव जी घर चले गए| इस प्रकार प्रभु ने उनको साक्षात दर्शन दिए| यह नामदेव की भक्ति मार्ग पर प्रथम जीत थी|
शुद्ध
ह्रदय से की हुई प्रर्थना से उनके पास शक्तियाँ आ गई| वह भक्ति भव वाले हो गए और जो वचन मुँह निकलते वही सत्य होते| जब आपके पिताजी को यह ज्ञान हुआ कि आपने ठाकुर में जान डाल दी व दूध पिलाया तो वह बहुत प्रसन्न हुए| उन्होंने समझा उनकी कुल सफल हो गई है|
परलोक
गमन:
आपने
दो बार तीर्थ यात्रा की व साधू संतो से भ्रम दूर करते रहे| ज्यों ज्यों आपकी आयु बढती गई त्यों त्यों आपका यश फैलता गया| आपने दक्षिण में बहुत प्रचार किया| आपके गुरु देव ज्ञानेश्वर जी परलोक गमन कर गए तो आप भी कुछ उपराम रहने लग गए| अन्तिम दिनों में आप पंजाब आ गए| अन्त में आप अस्सी साल की आयु में 1407 विक्रमी को परलोक गमन कर गए|
साहित्यक
देन:
नामदेव
जी ने जो बाणी उच्चारण की वह गुरुग्रंथ साहिब में भी मिलती हैं| बहुत सारी बाणी दक्षिण व महाराष्ट्र में गाई जाती है| आपकी बाणी पढ़ने से मन को शांति मिलती है व भक्ति की तरफ मन लगता है|
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