गरीब साहिब जी सम्पूर्ण जीवन परिचय
संत गरीबदास जी महाराज
तब
परमेश्वर कबीर जी
ने कहा कि
मैं कुँआरी गाय
का दूध पीता
हूँ। बालक गरीबदास
जी ने एक
कुँआरी गाय को
परमेश्वर कबीर जी
के पास लाकर
कहा कि बाबा
जी यह बिना
ब्याई (कुँआरी) गाय कैसे
दूध दे सकती
है ? तब (कबीर
जी ने कुँआरी
गाय अर्थात् बच्छिया
की कमर पर
हाथ रखा, अपने
आप कुँआरी गाय
(अध्नया धेनु) के थनों
से दूध निकलने
लगा। पात्र भरने
पर रूक गया।
वह दूध परमेश्वर
कबीर जी ने
पीया तथा प्रसाद
रूप में कुछ
अपने बच्चे गरीबदास
जी को पिलाया
तथा सतलोक के
दर्शन कराये। सतलोक
में अपने दो
रूप दिखाकर फिर
जिंदा वाले रूप
में कुल मालिक
रूप में सिंहासन
पर विराजमान हो
गए तथा कहा
कि मैं ही
120 वर्ष तक काशी
में धाणक (जुलाहा)
रूप में रहकर
आया हूँ। पवित्र
वेदों में जो
कविर अग्नि, कविर्देव
(कविरंघारिः) आदि नाम
हैं वह मेरा
ही बोध है।
‘कबीर बेद हमारा
भेद है, मैं
मिलु बेदों से
नांही। जौन बेद
से मैं मिलूं,
वो बेद जानते
नांही।।‘ मैं ही
वेदों से पहले
भी सतलोक में
विराजमान था।
(गाँव छुड़ानी जि. झज्जर
(हरियाणा) में आज
भी उस जंगल
में जहाँ पूर्ण परमात्मा, का सन्त
गरीबदास जी को
मानव शरीर में
साक्षात्कार हुआ था,
एक यादगार विद्यमान
है।) आदरणीय गरीबदास
जी की आत्मा
अपने परमात्मा कबीर
बन्दी छोड़ के
साथ चले जाने
के बाद उन्हें
मृत जान कर
चिता पर रख
कर जलाने की
तैयारी करने लगे,
उसी समय आदरणीय
गरीबदास साहेब जी की
आत्मा को पूर्ण
परमेश्वर ने शरीर
में प्रवेश कर
दिया। दस वर्षीय
बालक गरीब दास
जीवित हो गए।
उसके बाद उस
पूर्ण परमात्मा का
आँखों देखा विवरण
अपनी अमृत वाणी
में ‘‘सद्ग्रन्थ‘‘ नाम
से ग्रन्थ की
रचना की। उसी
अमृत वाणी में
प्रमाण:
अजब नगर में
ले गया, हमकूं
सतगुरु आन। झिलके
बिम्ब अगाध गति,
सूते चादर तान।।
उपरोक्त वाणी में
आदरणीय गरीबदास साहेब जी
महाराज ने स्पष्ट
कर दिया कि
काशी वाले धाणक
(जुलाहे) ने मुझे
भी नाम दान
देकर पार किया,
यही काशी वाला
धाणक ही (सतपुरुष)
पूर्ण ब्रह्म है।
कबीर ही सतलोक
से जिन्दा महात्मा
के रूप में
आकर मुझे अजब
नगर (अद्धभुत नगर
सतलोक) में लेकर
गए। जहाँ पर
आनन्द ही आनन्द
है, कोई चिन्ता
नहीं, जन्म-मृत्यु,
अन्य प्राणियों के
शरीर में कष्ट
आदि का शोक
नहीं है।
इसी काशी में
धाणक रूप में
आए सतपुरुष ने
भिन्न-भिन्न समय
में प्रकट होकर
आदरणीय श्री अब्राहीम
सुल्तान अधम साहेब
जी तथा आदरणीय
दादू साहेब जी
व आदरणीय नानक
साहेब जी को
भी सतनाम देकर
पार किया। वही
कविर्देव जिसके एक रोम
कूप में करोड़ो
सूर्यों जैसा प्रकाश
है तथा मानव
सदृश है, अति
तेजोमय अपने वास्तविक
शरीर के ऊपर
हल्के तेजपुंज का
चोला (भद्रा वस्त्र
अर्थात् तेजपुंज का शरीर)
डाल कर हमें
मृत्य लोक (मनुष्य
लोक) में मिलता
है। क्योंकि उस
परमेश्वर के वास्तविक
स्वरूप के प्रकाश
को चर्म दृष्टि
सहन नहीं कर
सकती।
आदरणीय गरीबदास साहेब जी
ने अपनी अमृतवाणी
में कहा है
‘सर्व कला सतगुरु
साहेब की, हरि
आए हरियाणे नुँ‘‘। सन्
1966 को पंजाब प्रान्त के
विभाजन होने पर
इस क्षेत्र का
नाम हरिआणा (हरयाणा)
पड़ा। लगभग 236 वर्ष
पूर्व कही वाणी
1966 में सिद्ध हुई कि
समय आने पर
यह क्षेत्र हरयाणा
प्रान्त नाम से
विख्यात होगा। जो आज
प्रत्यक्ष प्रमाण है।
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