Wani garib sahib ji
अकिल बिहूना आदमी, यों बन्धा जग माहिं।। 3 ।।
बुद्धिहीन ‘सुवा पक्षी' पंखों के होते हुए भी अज्ञानवश दूसरों के बंधन में पड़ जाता है। इसी प्रकार बुद्धिहीन मूर्ख मनुष्य मोह-माया की अज्ञानता में फंसकर इस संसार के बंधन में पड़ा हुआ है, अर्थात सब कुछ कहते-सुनते हुए भी मोह के बंधन से मुक्त नहीं हो पाता है।
सत साहेब जी : - SAT KABIR
अकिल बिहूना आंधरा, गज फन्दे पडो आय।
ऐसे सब लग बंधिया, काहि कहूं समझाय।। 5।।
ज्ञान-बुद्धि के बिना प्रत्येक प्राणी आंख रहते हुए भी अंधे के समान है। बुद्धिहीन मदमस्त हाथी अपार शक्तिशाली होते हुए भी जाल में फंस जाता है। इसी प्रकार इस जग का प्रत्येक जीव अपने-अपने अभिमान से बंधा हुआ है। किस-किस को समझाऊं, अर्थात विवेक बिना जहां देखो, यही हाल है।
सत साहेब जी : - SAT KABIR
माया सम नहिं मोहिनी, मन समान नहिं चोर।
हरिजन सम नहिं पारखी, कोई न दीसे ओर।।3।।
इस संसार में माया के समान कोई मोहने वाला नहीं है और मन के समान कोई चोर नहीं है। सद्गुरु के प्रियवर ज्ञान-उपदेशी तथा भक्ति-साधना करने वाले सेवक जनों के समान कोई पारखी (ज्ञानी) नहीं। इस प्रकार का ऐसा कोई और नहीं दिखाई देता।
सत साहेब जी : - SAT KABIR
माया सेती मति मिली, जो सोबरिया देहि।
नारद से मुनिवर गले, क्याहि भरोसा तेहि।। 10 ।।
इस माया-मोह से सावधान रहो। इससे मत मिलो, चाहे यह कितनी भी सुंदर व स्वर्णिम देह वाली ही क्यों न हो। इसके चक्कर में पड़कर तो देवर्षि नारद जैसे श्रेष्ठ मुनि भी गल गए। फिर विचार करो कि तुम्हारा क्या होगा? अर्थात माया के संग-प्रभाव से बच पाना अति कठिन है।
सत साहेब जी : - SAT KABIR
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