Sunday, April 28, 2019

फकीरी और रूहानियत

भक्ति  फकीरी और रूहानियत -:

फकीरी जब तक जीवन में नहीं आएगी रूहानियत भी आपके जीवन में नहीं हो सकती | फकीरी का मतलब 
ये नहीं की घर को त्याग करके कही जंगल में जाकर भक्ति करे या ग्रहस्त जीवन को त्याग दे | 
फकीरी का सही मायने आत्मा से हे ना की शरीर से | आज आपको अपने आस पास बहुत से साधु महात्मा 
नज़र आ जायँगे जो अपने भगवा पहनावे से तो फ़क़ीर हे अंदर से एक गृहस्थ से भी कहि ज्यादा है |
जीवको  चाहिए जीवन में साधगी हो संयम में रहे हर पल  अपने मालिक मुर्शिद के अनंत प्रेम में डूबा रहे | 
क्या पता ये जीवन की डोर किसी पल टूट जाय | इसलिए हर पल को ऐसे जिओ जैसे यही  क्षण आखिरी
  हो ||  जैसी फकीरी बाबा फरीद के जीवन चरित्र में थी जैसी मीरा जी के जीवन में थी || जब जीवन में फकीरी पूरी तरह उतर जाय तो मंज़िल करीब आ गयी अब करो चलने की तैयारी ,सतगुरु  इतने दयाल 
हे की जीव को एक पल में काल सृस्टि से निकल सकते हे बशर्ते जीव को चाहिए प्रेम और आधीनता 

बोली ठोली मसखरी ,हंसी खेल हराम | 
मद माया और इस्तरी ,नहीं सन्तन के काम ||
माला कहे काठ के तू  क्यों फेरे मोहे | 
मनका मनका फेर ले तुरत मिला दू तोहे ||  

चाल बकुल की चालत हे ,बहुरि कहावे हंस | 
ते मुक्ता कैसे चुगे , पड़े काल के फंस || 

बाना पहिरे सिंह का, चले भेड़ की चाल | 
बोली बोले सियार की , कुत्ता खावे काल || 


तन को जोगी सब करे ,मन को करे न कोई | 
सहजे सब सीधी पाइये ,जो मन जोगी होय || 
तन को भगवा वस्त्रो से ढक लिया अनेको प्रकार के मंत्र देते फिरते हे जबकि उनको परमात्मा की मूल ज्ञान 
का कोई भेद नहीं ,यदि मन को परवर्तित कर योगी बना लिया जाय तो सहज ही सारी सिद्धि प्राप्त हो जायगी | 

माला तिलक लगाए के, भक्ति ने आई हाथ | 
दाढ़ी मूछ मुड़ाय के, चले दुनि के साथ ||

इस तरह से सद्गुरु ने कहा को जो माला और तिलक लगा लिया ऊपरी दिखावा कर दिया उनको भक्ति 
कभी हाथ नहीं आ सकती , जो केवल एक दिखावा मात्र हे जो खुद तो काल का ग्रास बन ही जाते हे भोले 
जीवो को भी व्यर्थ की भक्ति में लगा कर जीवन नस्ट करा देते है | 


सभी साधको को सतगुर कहते ही अब भी समय हे समझ लो इस अनमोल जीवन को और शेष जीवन 
को परमात्मा के पथ को और ले चलो || 

इक राँझा मैनूँ लोड़ीदा।
इक राँझा मैनूँ लोड़ीदा।

कुन-फअकूनो[1] अग्गे दीआँ लगिआँ,
नेहु ना लगड़ा चोर दा,
आप छिड़ जान्दा नाल मज्झी दे,
सानूँ क्यों बेलिओं मोड़ीदा?
इक राँझा मैनूँ लोड़ीदा।

राँझे जेहा मैनूँ होर ना कोई,
मिन्नताँ कर कर मोड़ीदा।
इक राँझा मैनूँ लोड़ीदा।

मान वालिआँ दे नैण सलौने,
सूहा दुपट्टा गोरी दा।
इक राँझा मैनूँ लोड़ीदा।

अहिद[2] -अहिमद[3] विच्च फरक ना बुल्लिआ,
इक रत्ती भेत मरोड़ी दा।
इक राँझा मैनूँ लोड़ीदा।

सत साहिब जी || 













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