Tuesday, April 30, 2019

ज्ञान का अंग

सत  साहिब जी || 

ज्ञान का अंग
SAT KABIR

सत साहेब जी
मानुष बिचारा क्या करे, जाके शुन्य शरीर। जो जिव झांकि न ऊपजे, तो कहा पुकार कबीर॥ मानुष जन्म नर पायके, चूके अबकी घात। जाय परे भवचक्र में, सहे घनेरी लात।।॥ रतन का जतन करु, मांड़ी का सिंगार। आया कबीरा फिर गया, झूठा है हंकार॥॥ मानुष जन्म दुर्लभ है, बहुरि न दूजी बार। पक्का फल जो गिर पड़ा, बहुरि न लागै डार॥ बांह मरोरे जात हो, मोहि सोवत लिये जगाय। कहहिं कबीर पुकारि के, ई पिंडे होहु कि जाय॥ साखी पुरन्दर ढहि परे, बिबि अक्षर युग चार। कबीर रसनारम्भन होत है, कोइ कै न सकै निरुवार॥ बेड़ा बांधन सर्प का, भवसागर के मांहिं। जो छोड़े तो बूड़े, गहै तो डंसे बांहिं॥ हाथ कटोरा खोवा भरा, मग जोवत दिन जाय। कबीर उतरा चित्त से, छांछ दियो नहिं जाय॥ एक कहीं तो है नहीं, दोय कहाँ तो गारि। है जैसा रहै तैसा, कहहिं कबीर बिचारि॥ अम्मृत केरी पूरिया, बहु विधि दीन्हा छोरि। आप सरीखा जो मिलै, ताहि पियावह घोरि॥ अम्मृत केरी मोटरी, शिर से धरी उतार। जाहि कहाँ मैं एक है, सो मोहिं कहै दुइ चार॥
जाके मुनिवर तप करें, वेद थके गुण गाय। सोइ देउं सिखपना, कोई नहीं पतियाय॥ एक ते अनंत भौ, अनंत एक है आय।। परिचय भई जब एकते, अब अनन्तो एकै माहि समाय॥

कहि ब्रह्म और नहिं कोई । सब घट रमा कबीर है सोई ।। नहीं कबीर नहीं धर्मदासा । अक्षर यक सब घटहि निवासा।। तुम धर्मन सत्य कर मानों। दूजी बात न कछु मन आनो। बावन अक्षर संग भुलाना। अक्षर आदि को मर्म न जाना।। आदि अक्षर गुरु पारस दीना। पारस छुय तो पारस कीना।। पूरा गुरु हो सोई लखावे। दो अक्षर का भेद बतावे।। एक छुड़ावे एक मिलाबे। तब नि:संख्या निज घर पहुँचावे।। सो गुरु बंदी छोर कहाबे। बंदी छोड़ के जिव मुक्तावे॥
कैसा है सृष्टि चलाने वाले का कानून? छोटा सा उदाहरण देता हूँ इस पर चिंतन करें। कहा जाता है - सात कुम्भी नरक हैं, पाप करने वालों को वहाँ डाला जाता है। अर्थात् सूक्ष्म-शरीर में 'आत्मा' को उन नरकों में डाला जाता है। इन नरक-कुण्डों में मल-मूत्र कुण्ड, मवाद कुण्ड, रुद्र कुण्ड आदि कुण्डों में जीव असहनीय कष्ट पाता है।
बुरे कर्म करने वालों को, पापियों को धर्मों में यह कह कर डराया जाता है कि वहाँ चोरी करने वालों के हाथ काटे जाते हैं। जो झूठी गवाही देते हैं, उनकी जीभ काटते हैं। शराब पीने वाले को गर्म-गर्म तेल पिलाया जाता है। जो पराई स्त्री की तरफ़ जाते हैं, व्याभिचार करते हैं उनको लोहे की गर्म स्त्री के साथ चिपकाया जाता है। मैं पूछता हूँ ये कैसी धर्म सजायें हैं? ये सजायें संसार में भी अनेक अरब आदि देशों के क्रूर शासकों और कबीलों में प्रचलित हैं। किसी का लड़का चोरी करे तो उसके हाथ काटे जायें तो क्या कहेंगे आप! अभद्र कहा जायेगा। किसी का लड़का और की लडकी सहमति से साथ भाग जाये तो लड़के को गर्म लोहे की स्त्री के साथ चिपकाने की सजा को आप क्या कहेंगे! दारू पीने वाले को कहें कि गर्म तेल पी, तो आप क्या कहेंगे इस सजा को ! ये सब अभद्र और क्रुरतम ही कहा जाएगा न सय समाज में! तो ये सजायें कौन दे रहा है? भगवान को मात्मा को दया का सागर कहा जाता है। फिर ये सजायें तो शैतानियत
का सबूत दे रही हैं। कौन है जो ऐसी सजायें दे रहा है।


सत साहिब जी ||| 




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