आचार्य गरीब दास साहिब वाणी-:
सोई साध अगाध है, आपा न सराहै |
पर निंद्या नहीं संचरै, चुगली नहीं चाहै || टेक ||
काम क्रोध तृष्णा नहीं, आशा नहीं राखै |
साचे से परचा भया, जब कूड़ न भाषे || १ ||
एकै नजर निरंजना, सब हीं घट देखै |
ऊँच नीच अंतर नहीं, सब एकै पेखै || २ ||
सोई साध शिरोमणी, जप तप उपगारी |
भूले कूँ उपदेश दी, दुर्लभ संसारी || ३ ||
अकल अकीन पठाय दे, भूले कूँ चेतै |
सो साधू संसार में, हम बिरले भेटै || ४ ||
सूतक खोवैं सत्य कहैं, साचे से लावै |
सो साधू संसार में, हम बिरले पावैं || ५ ||
निरख निरख पग धरत हैं, जीव हिंसा नाहीं |
चौरासी त्यारन तिरन, आये जग माहीं || ६ ||
इस सौदे कूँ उतरे, सौदागर सोई |
भरें जिहाज उतार दें, भवसागर लोई || ७ ||
भेष धरें भागे फिरैं, बहु साखी सीखें |
जानैं नहीं विवेक कूँ, खर कै ज्यौं रीकैं || ८ ||
अरवाह मुकामां दर्श है, जो अर्श रहंता |
उनमनि में तारी लगी, जहां अजपा जपंता || ९ ||
शुन्य महल अस्थान है, जहां अस्थिर डेरा |
दास गरीब सुभान है, सत साहिब मेरा || १० ||१५ |
sat sahib ji
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