Friday, April 26, 2019

सत्यमार्ग को जीव कैसे पाए




                 

सत्यमार्ग को जीव कैसे पाए ये एक बड़ी उलझन बन गयी हे | आज भारत के अंदर ही लाखो गुरु
बन गये हे | ऐसे में पूर्ण सतगुरु का पाना बहुत जटिल काम हे ,

कोई भी देह धारी जीव पूर्ण सतगुरु नहीं हो सकते ,पूर्ण सतगुरु एक मात्र खुद कबीर साहिब ही हे.|
दुनिया भर के गुरुओ ने जीवन को काल भक्ति से नस्ट कर दिया है |

आओ हम सभी समझे पूर्ण सतगुरु को कैसे पाया जा सकता है |
एक मात्र प्रेम ही वो मार्ग हे जिससे हम अपने प्यारे सतगुर को पा सकते है


कबीर कबीर तू क्या कहे साध अपना शरीर पांचो इन्द्री 
बस में कर तुहि दास कबीर|| 

यहाँ सतगुरु ने अपने सरीर को साधने की बात कही हे ,आज दुनिया भर में सब ने जान लिया है ,
पूर्ण सतगुर कबीर हे||
जीव हजारो लाखो जन्मो से इन इंद्रीयो का भोग करता आ रहा हे और ये भोग कभी किसी जनम में पूरा नहीं हो पाता क्योकि इंद्री भोग कभी न समाप्त होने वाला है || 

जीव खुद को समझने में लाचार दिखाई पड़ता हे , वो ये समझ ही नहीं पा रहा की भक्ति हे क्या पिछले १००० सालो में भक्ति जो सतर गिरा हे 
शायद हे किसी युग में ऐसा हुआ हो पाखंड पूजा मूर्त पूजा। पेड़ पूजा ,
नदी पूजा यहां तक की पुजवाने वालो ने घर की चौखट तक पुजवा दी 
और जो वेदो में पूजने लायक बताया हे उससे सबको विमुख कर दिया 
आदरणीय नानक साहिब ,आदरणीय गरीब साहिब ,आदरणीय रविदास साहिब ,आदरणीय मालिक दास साहिब जी ,इन सभी संत महापुरषों ने 
मूर्त पूजा का घोर विरोध किया और पाखंड को ख़त्म  करने में घर घर 
गॉव गॉव जाकर सत्संग वाणियो के माध्यम से भोले जीवो को बताया 
भक्ति  का रहस्या मालिक से मिलने की सरल राह जिस पर चल कर जीव 
अपना आत्म कल्याण करा सके फिर कभी इस भवसागर में न फस सके लेकिन  आज उन्ही संतो के पंथ भटक गए हे, नाम तो संतो को लेते हे परन्तु उन्ही की मूर्त बनाकर कर पूजने लगे हे उनपर फुल टिका लगाने लगे हे ,और भोले जीव अज्ञान के आभाव में उनसे जा मिलते हे और हमेशा  के लिए उनके बंधन में बंध जाते हे|| 
परमात्मा का मार्ग बेहद सहज हे जिसको पाने के लिए किसी पाखंड की जरूरत नहीं किसी भगवा किसी पंथ किसी आश्रम की जरूरत नहीं || 
रघुराई सहज ही मिल जाते हे अगर जीव के अंदर प्रेम हो अपने मालिक 
मुर्शिद के प्रति इसलिए  सद्गुरु कबीर साहिब ने कहा हे || 

साधो ये मूर्दो का गॉव पीर मरे पैग़म्बर मरे और मरे जिन्दा जोगी 
तेतीस कोटि देवता मरे हे मरे चौदह भुवन के चौधरी || 
फिर तुम किस से आस लगाकर बैठे हो आज संसार की जनसख्या 7. 5 अरब हो गयी हे आजतक इतने जीव इंसान रूप में धरती पर नहीं हुए परन्तु इतनी बड़ी आबादी में से जीवित कोई कोई मालिक का प्यारा हंस हे ,बाकि सभी माया और मन के अधीन हे है दिखाने को वो सभी धार्मिक हे  परन्तु कथनी और करनी में बड़ा 
फर्क मालूम पड़ता है || 

















1 comment:

thnx for comment