Wednesday, September 18, 2019

वाणी श्री गरीब साहिब जी

वाणी  श्री गरीब साहिब जी 







बिन ही मुख सारंग राग सुनबिन ही तंती तार। 
बिना सुर अलगोजे बजैंनगर नांच घुमार।।
घण्टा बाजै ताल नगमंजीरे डफ झांझ। 
मूरली मधूर सुहावनीनिसबासर और सांझ।।
बीन बिहंगम बाजहिंतरक तम्बूरे तीर। 
राग खण्ड नहीं होत हैबंध्या रहत समीर।।
तरक नहीं तोरा नहींनांही कशीस कबाब। 
अमृत प्याले मध पीवैंज्यों भाटी चवैं शराब।।
मतवाले मस्तानपुरगली-गुलजार। 
संख शराबी फिरत हैंचलो तास बजार।।
संख-संख पत्नी नाचैंगावैं शब्द सुभान। 
चंद्र बदन सूरजमुखीनांही मान गुमान।।
संख हिंडोले नूर नगझूलैं संत हजूर। 
तख्त धनी के पास करऐसा मुलक जहूर।।
नदी नाव नाले बगैंछूटैं फुहारे सुन्न। 
भरे होद सरवर सदानहीं पाप नहीं पुण्य।।
ना कोई भिक्षुक दान देना कोई हार व्यवहार। 
ना कोई जन्मे मरेऐसा देश हमार।।
जहां संखों लहर मेहर की उपजैंकहर जहां नहीं कोई। 
दासगरीब अचल अविनाशीसुख का सागर सोई।।

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गरीबचौरासी बंधन कटेकीनी कलप कबीर। 
भवन चतुरदश लोक सबटूटे जम जंजीर।।
गरीबअनंत कोटि ब्रांड मेंबंदी छोड़ कहाय। 
सो तौ एक कबीर हैंजननी जन्या न माय।।
गरीब
शब्द स्वरूप साहिब धनीशब्द सिंध सब माँहि। 
बाहर भीतर रमि रह्याजहाँ तहां सब ठांहि।।
गरीब
जल थल पृथ्वी गगन मेंबाहर भीतर एक। 
पूरणब्रह्म कबीर हैंअविगत पुरूष अलेख।।
गरीब
सेवक होय करि ऊतरेइस पृथ्वी के माँहि। 
जीव उधारन जगतगुरुबार बार बलि जांहि।।
गरीब
काशीपुरी कस्त कियाउतरे अधर अधार। 
मोमन कूं मुजरा हुवाजंगल में दीदार।।
गरीब
कोटि किरण शशि भान सुधिआसन अधर बिमान। 
परसत पूरणब्रह्म कूंशीतल पिंडरू प्राण।।
गरीब
गोद लिया मुख चूंबि करिहेम रूप झलकंत। 
जगर मगर काया करैदमकैं पदम अनंत।।
गरीब
काशी उमटी गुल भयामोमन का घर घेर। 
कोई कहै ब्रह्मा विष्णु हैंकोई कहै इन्द्र कुबेर।।
गरीब
कोई कहै छल ईश्वर नहींंकोई किंनर कहलाय। 
कोई कहै गण ईश काज्यूं ज्यूं मात रिसाय।।
गरीब
कोई कहै वरूण धर्मराय हैकोई कोई कहते ईश। 
सोलह कला सुभांन गतिकोई कहै जगदीश।।
गरीब
भक्ति मुक्ति ले ऊतरेमेटन तीनूं ताप। 
मोमन के डेरा लियाकहै कबीरा बाप।।
गरीब
दूध न पीवै न अन्न भखैनहींं पलने झूलंत। 
अधर अमान धियान मेंकमल कला फूलंत।।
गरीब
काशी में अचरज भयागई जगत की नींद। 
ऎसे दुल्हे ऊतरेज्यूं कन्या वर बींद।।
गरीब
खलक मुलक देखन गयाराजा प्रजा रीत। 
जंबूदीप जिहाँन मेंउतरे शब्द अतीत।।
गरीब
दुनी कहै योह देव हैदेव कहत हैं ईश। 
ईश कहै पारब्रह्म हैपूरण बीसवे बीस।।



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