Thursday, September 12, 2019

संत श्री चंद की कथा

संत श्री चंद की कथा 
यह एक महान कथा उस महान  संत की जिसका मतलब सीधा १३वे पंथ 
परदर्शक से हे , यह पंथ  गरीब दस जी के नाद से जुड़ा हुआ हे ,अनुरोध हे इसे थोड़ा धयान से पढ़े | 




महाराज श्रीचंद जो मोतीलाल जी के शिष्य और उत्तराधिकारी हुए थे वो जब 14 साल के थे तो बकरी चराते चराते काफी दूर निकल गए।
पहले रेवड़ (बकरियों का झुंड) को 100 किमी. तक चराने ले जाते और कई दिनों में घर वापिस आते तो महाराज श्रीचंद जी भी काफी दूर चले गए और अच्छी हरी भरी बणी देखी तो वहां डेरा लगा लिया।
 तो वहां उस बणी में मोतीलाल महाराज रहा करते थे।
श्रीचंद के पास कुछ चावल थे वह बकरियों का दूध निकालता और खीर बना लेता और कुछ खीर संत मोतीलाल को भी दे देता। काफी दिन मोतीलाल जी की संगत मिली और सत्संग सुना लेकिन मोतीलाल पर विश्वास नहीं था कि ये सच्चे संत है , पर ज्ञान अच्छा लगा।
एक दिन जब चांदनी रात थी गर्मियों का मौसम था , मोतीलाल जी मालिक की चर्चा कर रहे थे और श्रीचंद सुन रहे थे।
पास में रेवड़ बैठा था अचानक शिकारी कुतों ने एक बकरी के बच्चे को मार दिया।
श्रीचंद रोने लगा तब मोतीलाल जी ने कहा रो मत बेटा भगवान पर विश्वास रखो वो सब ठीक कर देगा। लेकिन श्रीचंद चुप नहीं हो सके , क्योंकि वो बकरियां गांव के थोलेदार की थी।
श्रीचंद तो उनका सिरी था।
श्रीचंद को डर था कि मेरे मालिक मुझे मारेंगे व कहेंगे कि तुमने रखवाली नहीं की।
तब मोतीलाल जी ने उस मृत बच्चे से कहा, "किसी को इतना नहीं रुलाते अब उठ भी जाओ।"
इतना कहते ही मृत बच्चा जिंदा हो गया। ये देख श्रीचंद को बड़ा आश्चर्य हुआ और मोतीलाल जी के चरण छुये और धन्यवाद किया। नामदीक्षा ली।
एक दिन जब मोतीलाल जी ईंट का तकिया लगाये लेटे हुए थे , रात का वखत था।
श्रीचंद बकरियों की रखवाली में बैठे थे और सुमिरन कर रहे थे।
आंखे कभी बंद कर लेते कभी खोल लेते , अचानक ध्यान लग गया और अंदर के नजारे करने लगे।
देखा कि मोतीलाल जी सिंहासन पर बैठे है और सभी देवी देवता उनके सामने हाथ जोड़े खड़े हैं।
ये देख श्रीचंद अचम्भे में था तो मोतीलाल ने पूछा कि क्या हुआ बेटा, तो ऐसा क्या देख रहे हो।
इतने में आंखे खुल गई तो सामने लेटे मोतीलाल ने कहा तुमने मेरी बात का उत्तर नहीं दिया।
ये देख श्रीचंद पूरी तरह से फ़क़ीर हो गए और घर वापिस नहीं गए।
गांव के थोलेदार ने लंबे इंतजार के बाद दो आदमियों को भेजा कि श्रीचंद और बकरियों को ढूंढकर लाओ। कुछ दिनों में उन्होंने ढूंढ निकाला और श्रीचंद से कहा कि तुझे मालिक ने बुलाया है , चलो।
श्रीचंद ने कहा कि अब गुलामी मेरे गुरु मोतीलाल की करूँगा , तुम बकरियां ले जाओ , मैं नहीं जाऊंगा।
वो दोनों आदमी बकरियां लेकर वापिस लौट गए और थोलेदार से कहा कि श्रीचंद अब नहीं आएगा , वो वहीं रहेगा।
कोई मोतीलाल नाम के आदमी को अपना मालिक और गुरु कहता है , पागलों जैसी बातें करता है और कुछ बातें अपनी तरफ से बनाकर कह दी जिससे थोलेदार गुस्से से भर गया और कहा कि श्रीचंद मेरा सिरी (गुलाम) है , मैं देखता हूँ कैसे नहीं आएगा।
थोलेदार खुद श्रीचंद के पास जा पहुंचा और जबरदस्ती से श्रीचंद को गांव ले आया और घर का सारा काम करवाने लगा।
श्रीचंद कुछ समय बाद कहने लगा कि मुझे मेरे गुरु के दर्शन करा लाओ, लेकिन थोलेदार ने साफ मना कर दिया और हिदायत दी कि खबरदार जो गुरु का नाम भी लिया।
तो कुछ समय बाद श्रीचंद रात को चुपके से घर से भाग निकला और गुरु जी के पास जाने के लिए चल दिया।
जब सुबह पता चला कि श्रीचंद भाग गया तो फिर से ढूंढा और रास्ते से ही पकड़ लिया , गुरु तक नहीं पहुंचने दिया व लाकर एक कमरे में बंद कर दिया।
और जो अन्य सिरी थे उन्हें कहा कि तुम रेवड़ चराने जाओ।
श्रीचंद ये सब सुन रहा था और गुरु से प्रार्थना की कि मुझे अपने पास बुलालो, अब मैं आपके बैगेर नहीं रह सकता। इतने में गुरु के दर्शन हुए और कहा तुम बेफिक्र होकर निकल जाओ।
रात को अपने आप किवाड़ खुल गये और खुद मोतीलाल जी श्रीचंद का रूप बना के कमरे में बैठ गये और श्रीचंद उन गड़रियों के साथ चले गये।
जाकर मोतीलाल जी को प्रणाम किया और कहा बस अब तू ही तू और प्राण त्याग दिये।
गड़रियों ने उसका वहीं अंतिम संस्कार कर दिया और अस्थियां लेकर एक बन्दा गांव की तरफ रवाना हुआ।
उधर थोलेदार ने कमरा खोलकर श्रीचंद को बाहर निकाला और फिर से काम पर लगा दिया।
दो दिन बाद अस्थियां लेकर वो बन्दा गांव पहुंचा और थोलेदार से कहा कि साहब, श्रीचंद हमारे साथ गया था और वहां जाकर एक आदमी को प्रणाम किया और श्रीचंद चल बसा।
ये उनकी अस्थियां है।
इतने में वहां श्रीचंद आ गए। ये देख गड़रियों को आश्चर्य हुआ कि हमने खुद तेरा अंतिम संस्कार किया है और ये तुम्हारी अस्थियां है।
थोलेदार ने उन सभी को भी बुलाया जो बुलाया जो मौजूदा गवाह थे। उन्होंने भी कहा कि हां श्रीचंद मर चुका है , ये उन्ही की अस्थियां है।
तब थोलेदार ने वहां मौजूद श्रीचंद को कहा कि तुम जहां जाना चाहते हो जाओ , तो श्रीचंद ने कहा , "जब तक दो होते हैं तब एक दूसरे से मिलते है , अब कौन किससे मिलेगा।"
इस प्रकार श्रीचंद एक महान संत हुए और 25 वर्ष तक थोलेदार के घर काम किया और लोगों का भरम मिटाया कि देही बदलती है लेकिन गद्दी का मालिक एक ही होता है।

मोती माहिं सिरी है , सिरी है मोती माहिं।
सत ही गुरु गुरु ही सत दूजा जानो नाहिं।।


🌹सत साहेब जी🌹

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