Wednesday, September 18, 2019

साहिब कबीर दर्शन


                                                                    साहिब कबीर दर्शन



ऐसा राम कबीर ने जाना। धर्मदास सुनियो दै काना।।
सुन्न के परे पुरुष को धामा। तहँ साहब है आदि अनामा।।
ताहि धाम सब जीवका दाता। मैं सबसों कहता निज बाता।।
रहत अगोचर (अव्यक्त)सब के पारा। आदि अनादि पुरुष है न्यारा।।
आदि ब्रह्म इक पुरुष अकेला। ताके संग नहीं कोई चेला।।
ताहि न जाने यह संसारा। बिना नाम है जमके चारा।।
नाम बिना यह जग अरुझाना। नाम गहे सौ संतसुजाना।।
सच्चा साहेब भजु रे भाई। यहि जगसे तुम कहो चिताई।।
धोखा में जिव जन्म गँवाई। झूठी लगन लगाये भाई।।
ऐसा जग से कहु समझाई। धर्मदास जिव बोधो जाई।।
सज्जन जिव आवै तुम पासा। जिन्हें देवैं सतलोकहि बासा।
भ्रम गये वे भव जलमाहीं। आदि नाम को जानत नाहीं।।
पीतर पाथर पूजन लागे। आदि नाम घट ही से त्यागे।।
तीरथ बर्त करे संसारे। नेम धर्म असनान सकारे।।
भेष बनाय विभूति रमाये। घर घर भिक्षा मांगन आये।।
जग जीवन को दीक्षा देही। सत्तनाम बिन पुरुषहि द्रोही।।
ज्ञान हीन जो गुरु कहावै। आपन भूला जगत भूलावै।।
ऐसा ज्ञान चलाया भाई। सत साहबकी सुध बिसराई।।
यह दुनियां दो रंगी भाई। जिव गह शरण असुर (काल) की जाई।।
तीरथ व्रत तप पुन्य कमाई। यह जम जाल तहाँ ठहराई।।
यहै जगत ऐसा अरुझाई। नाम बिना बूड़ी दुनियाई।।
जो कोई भक्त हमारा होई। जात वरण को त्यागै सोई।।
तीरथ व्रत सब देय बहाई। सतगुरु चरणसे ध्यान लगाई।।
मनहीं बांध स्थिर जो करही। सो हंसा भवसागर तरही।।
भक्त होय सतगुरुका पूरा। रहै पुरुष के नित्त हजूरा।।
यही जो रीति साधकी भाई। सार युक्ति मैं कहूँ गुहराई।।
सतनाम निज मूल है, यह कबीर समझाय।
दोई दीन खोजत फिरें, परम पुरुष नहिं पाय।।
गहै नाम सेवा करै, सतनाम गुण गावै।
सतगुरु पद विश्वास दृढ़, सहज परम पद पावै।।
ऐसे जग जिव ज्ञान चलाई। धर्मदास तोहि कथा सुनाई।।
यही जगत की उलटी रीती, नाम न जाने कालसों प्रीती।।
वेद रीति सुनयो धर्मदासा। मैं सब भाख कहों तुम पासा।।
वेद पुराण में नामहि भाषा। वेद लिखा जानो तुम साखा।।
चीन्हों है सो दूसर होई। भर्म विवाद करें सब कोई।।
मूल नाम न काहू पाये। साखा पत्रा गह जग लपटाये।।
डार शाख को जो हृदय धरहीं। निश्चय जाय नरकमें परहीं।।
भूले लोग कहे हम पावा। मूल वस्तू बिन जन्म गमावा।।
जीव अभागि मूल नहिं जाने। डार शाख को पुरुष बखाने।।
पढ़े पुराण और वेद बखाने। सतपुरुष जग भेद न जाने।।
वेद पढ़े और भेद न जाने। नाहक यह जग झगड़ा ठाने।।
वेद पुराण यह करे पुकारा। सबही से इक पुरुष नियारा।
तत्वदृष्टा को खोजो भाई, पूर्ण मोक्ष ताहि तैं पाई।

No comments:

Post a Comment

thnx for comment