Wednesday, September 18, 2019

साहिब गरीब जी वाणी

साहिब गरीब जी वाणी




मन तू चल रे सुख के सागर जहाँ  शब्द  सिन्धु  रत्नागर ।
कोटि जन्म तोहे भ्रमत हो गए  कुछ ना हाथ लगा रे ।
कुकर  शुकर  खर  भया बौरे   कवुआ हंस  बुगा रे ।
कोटि जन्म तू राजा किन्हा मिटी न मन की आशा ।
भिक्षुक होकर दर-2 हांडया मिला न निर्गुण राशा ।
इन्द्र कुबेर  इश की  पदवी ब्रह्म वरूण  धर्मराया ।
विष्णु नाथ के  पुर को  जाकर  फेर  अपूठा  आया ।
असंख्य जन्म तोहे मर तयाँ होगे जीवित क्यों ना मरै रे ।
द्वादश मध्य महल मठ बौरे   बहुर  ना  देह धरै रे ।
दोजख  भीस्त  सभी   तैं देखे राज  पाठ के रसिया ।
तीन लोक से  तृप्त नाहीं   यह  मन  भोगी  खसिया ।
सतगुरु मिले तो इच्छा मेटे   पद मिल  पदे समाना ।
चल हंसा उस लोक पठाऊँजो आदि अमर अस्थाना ।
चार मुक्ति  जहाँ चम्पि करती  माया हो रही  दासी ।
दास गरीब  अभय पद  परसै  मिले राम  अविनाशी । 




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