पळापछी के कारने, सब जग रहा भुलान। निर्पक्ष होय के हरि भजै, सोई संत सुजान॥
बडे गये बड़ापने, रोम-रोम हंकार। सतगरु के परचै बिना, चारों बरन चमार।।
माया तजे क्या भया, जो मान तजा नहिं जाय। जेहि माने मुनिवर ठगे, सो मान सबन को खाय।।
माया के झक जग जरे, कनक कामिनी लाग। कहहिं कबीर कस बांचिहो, रुई लपेटी आग॥
माया जग सांपिनि भई, विष ले पैठि पताल। सब जग फन्दे फन्दिया, चले कबीरू काछ॥
सांप बिच्छू का मंत्र है, माहुरहू झारा जाय। विकट नारि के पाले परे, काढ़ि कलेजा खाय।।
तामस केरे तीन गुण, भंवर लेइ तहां बास। एकै डारी तीन फल, भांटा ऊख कपास।।
मन मतंग गइयर हने, मनसा भई सचान। जंत्र-मंत्र माने नहीं, लागी उड़ि-उड़ि खान।।
मन गयंद माने नहीं, चले सुरति के साथ। महावत बिचारा क्या करे, जो अंकुश नाहीं हाथ।।
ई माया है चूहड़ी, औ चूहड़ों की जोय। बाप पूत अरुझाय के, संग न काहु के होय॥
कनक कामिनी देखि के, तू मत भूल सुरंग। मिलन बिछुरन दुहेलरा, जस केंचुलि तजत भुवंग॥
माया केरी बसि परे, ब्रह्मा-विष्णु महेश। नारद शारद सनक सनन्दन, गौरी पूत गणेश॥
पीपरि एक जो महागंभानि,ताकर मर्म कोइ नहिं जानि। डारलबायफल कोइ न पाय, खसम अछत बहुपीपरे जाय॥
संखों रिद्धि सिद्धि लैने हारे, औह पद बिरले अर्थ विचारे।। राज करें भवसागर कीरा, जिन कूँ मिलैं न मुरशद पीरा। सत्यसुकृत हृदय में आवै, कोटि राज का तिलक धरावै।। अनभय पाठ पढ़े जो हंसा, धन्य धन्य जिन के हैं कुलबंसा। अष्ट कँवल दल नाम अधारा, धन्य धन्य जिनका है परिवारा।। जिन जान्या साहिब निज धर्मा, सो पौंहचेंगे निज पद घरमा। उस समर्थ का शरणा लैरे, चौदह भुवन कोटि जय जय रे।। संख रंग रंगी के साजै, जिस घर अजब घड़ावलि बाजै। सोहं मंत्र कल्प किदारा, अमर कछ होय पिंड तुम्हारा।। ॐ आदि अनादिं लीला, या मंत्र में अजब करीला। सोहं सुरति लगै सहनांना, टूटे चौदह लोक बंधाना।। राम नाम जपि कर थिर होई, ऊँसोहं मंत्र दोई। बुद्धि विवेक से पावै मूलं, तातें मिट है संसा सूलं ।।
दम सुदम का करै विचारा, सोहं सुरति झड़े घनसारा।। गरीब, सोहं सुरति सुभान है, जे कोई लावै तार। पल में पारिंग होत है, अलमीना दीदार।। ८० सहंस इकीसौं छै सौ जानें, कुंभक रेचक उलटा तानें इला पिंगला सुष्मण सारं, देखो दम दम में दीदारं। च्यार मुक्ति की करै न आशा, कोटि कोटि वैकुण्ठ विलासा। अजरा बीज जरै पात मांहीं सिंध अताज हंस पसाहीं।
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