बंदीछोड़ गरीब साहिब जी
गरीब चार पदारथ एक करि सुरति निरति मन पौन। | असिल फकीरी
जोग यह.गगन मंडल को गौन।। | कबीर साधू
ऐसा चाहिए.दुखै दुखावै नांहिं।। | पान फूल
छेडै नहीं बसै बगीचा मांहिं।। | साधू जन
सब मे रमैं दुख ना काहू देहि । | अपने मत
मे दृढ़ रहै, साधुन का
मत ऐहि।।
साधू भौंरा जग कल निशिदिन फिरै उदाश। | टुक टुक
तहां बिलंबिया जंह शीतल शब्द निवाश।। | निर बैरी
निह कामता स्वामी सेती नेह ।
बिषया से न्यारा रहै, साधुन का
मत ऐह ।। | मान अपमान
न चित धरै औरन को सनमान। | जो कोई
आशा करै उपदेशहिं तेंहिं ज्ञान ।। | प्रेम भाव
येक चाहिए,भेष अनेक बनाय।
चाहे घर मे बास करे चाहे बन मे जाय।। प्रेम पियाला जो पिये शीश दक्षिणा देय। लोभी शीश न दे सके नाम प्रेम का लेय।।
बंदीछोड़ गरीब साहिब जी
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