Monday, May 20, 2019

बंदीछोड़ गरीब साहिब जी

बंदीछोड़ गरीब साहिब जी 


रीब चार पदारथ एक करि सुरति निरति मन पौन। | असिल फकीरी जोग यह.गगन मंडल को गौन।। | कबीर साधू ऐसा चाहिए.दुखै दुखावै नांहिं।। | पान फूल छेडै नहीं बसै बगीचा मांहिं।। | साधू जन सब मे रमैं दुख ना काहू देहि | अपने मत मे दृढ़ रहै, साधुन का मत ऐहि।।

साधू भौंरा जग कल निशिदिन फिरै उदाश। | टुक टुक तहां बिलंबिया जंह शीतल शब्द निवाश।। | निर बैरी निह कामता स्वामी सेती नेह

बिषया से न्यारा रहै, साधुन का मत ऐह ।। | मान अपमान चित धरै औरन को सनमान। | जो कोई आशा करै उपदेशहिं तेंहिं ज्ञान ।। | प्रेम भाव येक चाहिए,भेष अनेक बनाय।


चाहे घर मे बास करे चाहे बन मे जाय।। प्रेम पियाला जो पिये शीश दक्षिणा देय। लोभी शीश दे सके नाम प्रेम का लेय।।

बंदीछोड़ गरीब साहिब जी 

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