Sunday, May 5, 2019

जीव जगत

जीव जगत के सभी प्राणी पांच तत्व (पंचभूत) से निर्मित है। इसे संसार के सभी धर्म - सम्प्रदाय व पंथ मानते है। इस विषय पर कोई मतभेद भी नहीं है। इन्हीं पांच तत्वों से निर्मित शरीर में एक जीव निवास करता है। जीव जिसे प्राण, आत्मा, राम व जीव आदि संज्ञा सूचक शब्दों से पुकारते है। जो आता और जाता है परन्तु कोई यह स्पष्ट नहीं बताता कि वह कहाँ से आया है और कहाँ को जायेगा। उसका वहाँ से किस प्रकार का नाता है। यदि वह किसी अन्य दीप या लोक का वासी था, तो प्रथ्वी लोक पर कैसे आया। क्यों आया, क्या करने आया और यदि आया तो जाने पर ( काल कवलित होने पर ) क्यों डरता है ? प्रभु या ईश्वर यदि उसे जन्म देता है तो काल के हाथों उसे क्यों मारता है ? यह सभी प्रश्न उसी जीव में उत्पन्न हो जाता है।
जीव अपने पूरे जीवन काल में किसी न किसी भांति इन रहस्यों को जानने को उत्सुक रहता और अपनी रक्षा तथा ऐश्वर्य के लिए तत्पर होता है। इन्हीं जिज्ञासाओं के निमित्त शुरू होता है संसार। जीव अपनी रक्षा एंव ऐश्वर्य के वशीभूत नाना उपाधि, रूप, शिक्त व मत - मतान्तर को जन्म देता है। वह खो जाता है, व्याकरण एवं भाषा से बुने संसार के जाल में। अपने सत्य के अनुसंधान पथ पर घिर जाता है, उस किले की चहार दीवारियों में वह, जिसका मुख्य दरवाजा बंद है। गुम हो जाता जाता है ऐसी भूल - भुलैया में वह, जिसमें सभी दरवाजे मतिभ्रम उत्पन्न करने वाले हैं। हर रास्ते का अंत वहीं होता है, जहां बाहर निकलने का निदान नहीं होता। बाहर वही निकल सकता है, जिसे यातो भूल - भुलैया का ज्ञान हो जाय या उसके ज्ञाता का साथ मिल जाय। इसी भूल - भुलैया के एक मरहमी ( ज्ञाता ) थे सद्गुरु कबीर साहब।
सद्गुरु कबीर साहब का जन्म, मृत्यु एवं जीवन काल रहस्य से भरपूर है। सद्गुरु कबीर साहब के जीवन पर देश - विदेश के भाषाई, विद्वानों, साहित्यकारों व भक्त लेखकों ने विस्तार से प्रकाश डाला है। परन्तु उसमें कई प्रश्न या तो अनुत्तरित हैं, या लेखकों ने श्रुतियों की आड़ में अपनी - अपनी मनः स्थिति के अनुरूप उत्तर बैठाने का प्रयास किया है। सहज योग के साधक को असहज रूप में समझनें - समझानें का प्रयोग किया गया है। सद्गुरु कबीर साहब के आत्म परिचय विषयक वाणियों को दर किनार करते हुए या उनके वाणियों का बिना सत्यावलोकन किये अपने - अपने राग के अनुरूप सद्गुरु कबीर साहब का जीवन वृत्तांत लिख दिया गया है। किसी ने संत को ईश्वर, किसी ने सद्गुरु तो किसी ने दास, किसी ने हिंदू, तो किसी ने मुसलमान, किसी ने जुलाहा तो किसी ने कोरी, किसी ने अविवाहित, तो किसी ने दो पत्नी एवं चार सन्तान से युक्त माना है। सदगुर कबीर साहब के जीवन परिचय को जानने के लिए सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर उन सभी सत्य पहलूओं पर विचार करना चाहिए जो सद्गुरु के बारे में सहज वर्णन करते है। सदगुर कबीर साहब अपने आत्म परिचय में कहते है :-


1 हिंदू कहो तो हौं नहीं, मुसलमान हम नाहि।
पाँच तत्त्व का पूतला, गैबी खेलन माहि।।
2 अब हम अविगत से चलि आये, मेरो भेद विधिहु नहिं पाए।
ना हम लीन्हा गर्भ बसेरा, बालक हैं दिखलाये।
काशी शहर सरोवर भीतर, तहाँ जुलाहा पाये।
रहे विदेह देह धरि आये, काया बीर कहाये।
वंश बेली जीवन के कारण, हंस ऊबारन आये।
काशी में हम प्रगट भये हैं, रामानंद चेताये।
3 अब हम आदि संदेशी आये।
निर्गुण - सगुन जीव भुलाने,
तब हम यह जग आये ।
यम की त्रास देख जीवन पर,
समरथ हुकुम सिखाये।
4 सतयुग सत्यसुकृत नाम रहु। अरु मुनिंद्र त्रेताहि।।
द्वापर करूणामय रहेब। अब कबीर कलि माहि।।
5 हम कह दिया संदेश, तुम्हारे पीव का।
बिन समुझे नहिं चैन, आपने जीव का।
6 सब वजूद के अंदरे, हैं मौजूद कबीर।
मोहि सुलभ कर देखिये, सबही में हैं पीर।
हमही दास दसन के दासा, अगम अगोचर हमरे पासा।
7 युगन - युगन हम आय चेतावा,
कोई - कोई हंस हमारा हो।
कहैं कबीर ताहि पहुँचावों,
सत्य पुरुष दर्बारा हो।
8 जब हम रहे रहा नहिं कोई, हमरे माँह रहा सब गोई ।
9 हम तो मूल सुरति हैं, तुम हो मेरे वंश।
हम तुम पलक हजूर के, दोऊ साहब के अंश।
10 सबकी कहै कबीर कहावै,
जेहि लख पड़े सो मो मन भावै।
देह नहीं औ दरशे देही,
कहैं कबीर हम शब्द सनेही।
11 मैं तो सबही की कही, मोको कोई न जान ।
तब भी अच्छा अब भी अच्छा, जुग - जुग होऊ न आन ।
उपरोक्त सभी वाणियों का खुले दिमाग से सत्यावलोकन करने पर स्वतः स्पष्ट है कि सद्गुरु कबीर साहेब सामान्य पुरुष नहीं थे। साहब ने अपने को आदि संदेशी बताया है। अपने अस्तित्व को तब से बताया जब से इस संसार के निर्माण का प्रारब्ध भी नहीं हुआ था। साहब ने हंसो को उबरने के लिए विदेह से देह धरने की बात कही है। वह गर्भावास का स्वयं खंडन करते है। साहब स्वयं को हिंदू - मुसलमान होने का भी खंडन करते हुए कहते है, कि पांच तत्व के पिंड का मेरा शरीर अवश्य है। परन्तु इसमे गैवी (सत्यलोक का कर्ता) सदैव खेलता है। सद्गुरु कबीर साहेब ने गर्भवास के खंडन में अपने को सत्यलोक का वासी प्रमाणित करते हुए स्पष्ट किया है :-
न हम कीन्हा गर्भ वसेरा,
बालक हौं दिखलाये।
काशी शहर सरोवर भीतर,
तहां जुलाहा पाये।
साहब कहते है, कि मैं गर्भ में नहीं आया किन्तु बालक होकर दिखला दिया। पुनः वह कहते हैं, कि काशी में सरोवर के भीतर ( जल राशि के भीतर जहां गर्भ पिण्ड जल की सतह पर नहीं तैर सकता है और न ही कमल का पुष्प व पत्ता उसका भार ग्रहण कर सकता है ) जुलाहा जाति के दम्पती हमें पाये।
यदि हम सभी सद्गुरु कबीर साहब कि वाणियों को महज एक अनुभवी व्यक्ति विशेष की वाणी या अपनी बड़ाई में सत्य से परे व असंभव मान लें तथा इसे अतिशयोक्तितपूर्ण कथन ही समझे तो भी अन्य पहलू हमारे चक्षु खोलने के लिए प्रमाण रूप में उपलब्ध है। आइये समीक्षा करें
इस प्रकृति ( दूसरे की बनाई हुई ) में जीव चार खानियों के माधयम से आता है। चार खानियां है अंडज, पिंडज, स्वदेज और उख्मज या उद्भिज। मानव जन्म पिंडज ( गर्भ ) खानि में होता है। ईश्वरीय शक्तियों का गर्भ से जन्म लेना अवतार कहा जाता है। ईश्वरीय शक्तियों का बिना चार खानिओं के माद्ध्यम से प्रत्यक्षीकरण को प्रगट होना कहा जाता है।
अवतारी पुरुष या ईश्वर गर्भ से जन्म लेते है और प्रकट होने वाले ईश्वर देवता आदि जिस रूप से निकलकर प्रत्यक्ष होते हैं पुनः उसी रूप में समाहित होकर अपना प्राकट्य समाप्त करते हैं। विश्व के सभी धर्मो के प्रवर्तक, पैगम्बर, ईश्वर, देवता एवं संदेशवाहक की उपाधि से विभूषित महापुरुष गर्भ से पिंड रूप में इस संसार में आये और जब अपनी जीवन लीला समाप्त किए तब भी पिंड रूप में अपनी शरीर छोड गये। अर्थात जैसे आये थे वैसे चले गये। धर्म ग्रंथों एवं पुराणों में ईश्वर या देवता के प्रकट होने का वर्णन मिलता है, किन्तु उसका भी प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिलता है। उन सभी प्रकटीकरण का सत्य और झूठ भी सिर्फ उसी को ज्ञात था, जिसके सन्मुख ईश्वर प्रकट हुए और गुप्त हो गये। उसको सत्य मान लेना चाहिए क्योंकि ईश्वर सिर्फ योग्य पुरुष को प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। सामान्य जन को नहीं। प्रभु जब भी प्रकट होते हैं, तो उसकी पूर्व सुचना या संकेत ऐसे भक्त को भी नहीं होता जिनके सम्मुख प्रत्यक्ष प्रकटीकरण होता है। किन्तु सद्गुरु कबीर साहब ने प्रकटीकरण की घटनाओं को सामान्य जन एवं सिद्ध भक्तों के समक्ष प्रस्तुत कर सत्य सत्ता का सच बताया और पाखंडों का खंडन किया।
सद्गुरु कबीर साहब भी चारो युगों में प्रकट हुए हैं। कलयुग में ही कबीर साहब का चौदह बार प्रकट होने का प्रमाण कहते है। जिस कबीर को हम जुलाहा एवं काशी का वासी मानते हैं । वह सद्गुरु कबीर साहब का नवीं बार का प्रकट होना है। यह प्रकट होना सामान्य नहीं, मिनट या घंटे भर के लिए नहीं बल्कि पूरे १२० वर्षों के समय के लिए था। उन्होंने युगों - युगों से जनसामान्य में प्रभु के प्रति आस्था - अनास्था और उनके अस्तित्व के सच व उनको पाने तथा उन तक पहुँचने के माध्यमों पर बने धर्म, पंथ, सम्प्रदायों के झगडों का अंत करने के उद्देश्य से प्रमाण ( साक्ष्य ) आधारित घटनाओं एवं वाणियों द्वारा जनसामान्य ( राजा, रंक एवं संत, कबीरा ) को चेताया। सद्गुरु कबीर साहेब ने जीव को अमरलोक तक पहुँचने के लिए उचित राह दिखाया और बताया कि जीव कैसे इस लोक में आ गिरा।
काशी स्थित लहर तारा तालाब पर बालक रूप में कबीर साहेब कमल के पुष्प पर प्रकट हुए। किन्तु हमारे हिन्दी भाषा के विद्वान लेखकगण इसे नहीं मानते। कहते हैं, ऐसा कैसे सम्भव है। कबीर पन्थ के अनुयायी भक्ति भावना में अंधे होकर कबीर को ईश्वर का दर्जा देने हेतु एक गढा स्वांग रचते हैं। हमारे हिन्दी साहित्य के विद्वान जिन्होंने कबीर साहब पर पुस्तकें लिखी है, उनमें एक - दो विद्वान को छोड़कर सभी ब्राह्मण मूल के हैं। कबीर साहब को ब्राह्मण बनाने के लिए विद्वानों ने विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से कबीर का जन्म बताया जिससे ब्राह्मण कुल का मान सम्मान बढ़ें जब कि उक्त विधवा स्वयं कुल मर्यादा की लाजवस अपने बालक को लहरतारा तालाब में छुपा आई। श्रुतियों के आधार पर एक कहानी इस प्रकार है। ( कबीर मूल्यांकन का एक और निष्कर्ष से उदघृत, लेखक मत्स्येन्द्र शुक्ल के अनुसार " काशी में एक ईश्वर भक्त और साधु महात्माओं पर श्रद्धा रखने वाले ब्राह्मण रहा करते थे। महात्मा रामानंद जी के शिष्यों में उनका प्रधान स्थान था। एक दिन अपनी विधवा कन्या के साथ वे रामानंद जी के आश्रम में गये। कन्या के व्यवहार, स्वभाव, कर्तव्य परायणता और अभिवादनशीलता से प्रभावित होकर महात्मा जी ने उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। उन्हें कन्या के वैधव्य का कोई ज्ञान न था। अतः पिता द्वारा सखेद निवेदन किये जाने पर रामानंद जी बहुत दुखी हुए और कहा मेरी वाणी निरथर्क नहीं जा सकती। इससे जिस पुत्र का जन्म होगा वह मानव जाति के इतिहास में अद्वितीय पुरुष स्वीकारा जायेगा। अंततः वह दिन आ ही गया जब वैधव्यतुषारावृत्त ब्राह्मण कन्या ने प्रभा मण्डित अलौकिक पुत्र रत्न को जन्म दिया। सामाजिक भय और लोक - लाज के कारण वह अपने ही वंश को संरक्षण न दे सकी। तिमिर स्नान सन्नाटे की रात नवजात शिशु को लिए वह अज्ञात पथ पर चल पड़ी। कुछ दूर चलकर उसने लहरतारा नामक तालाब के किनारे उसे झुरमुटो के बीच अज्ञात भविष्य के हाथों सौप दिया। कबीर का स्पर्श पाते ही धरती सिहर उठी, आकाश काँप गया, नक्षत्रों ने मूक भाव से अपनी श्रद्धा व्यक्त की। जो संसार में अमरत्व का प्रथम स्वर बनकर आया हो, भला उसका बाल बांका कौन कर सकता है। वह सात समुद्र की लहरों से जूझने ले बाद भी अमर रहेगा।
परिवर्तन के अलिखित ग्रन्थ को कौन पढ़ सकता है। कुछ ही देर बाद नीरू नाम का एक जुलाहा अपनी पत्नी के साथ उधर से गुजरा। इनको कोई संतान न थी। बच्चे की चीख सुनकर उन्होंने उसे उठा लिया। घर ले जाकर बच्चे का लालन - पालन किया और एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति पाकर नैसर्गिक आनंद से भाव विभोर हो गया। कबीर सम्प्रदाय के अनुयायी इन्हें लहरतारा के कमल पुष्प पर अवतीर्ण मानते है। इस कथन में यथार्थ की अपेक्षा भावना का ही प्रधान्य है।"
उपरोक्त कहानी से स्पष्ट है कि पौराणिक कथानकों की भांति ही यह कथा तैयार की गयी है और रामानंद जी के आशीर्वाद से कबीर का जन्म हुआ। रामानंद जी को क्या कुमारी, विवाहिता एवं विधवा की पहचान नहीं थी ? यदि भाव विभोर होने से यह त्रुटि हुई, तो भी नौ माह तक गर्भ संभालने के पश्चात जबकि यह जानते हुए भी कि वह एक महान अद्वितीय बालक को जन्म देने वाली है, नहीं फेकती। यदि फेकती भी तो अंधेरी रात में अकेले घनघोर जंगल में एक औरत के जाने की बात कितनी गले उतरती है। ब्रह्मलीन मुनी जी ने अपनी पुस्तक ' कबीर चरितम ' में जो सम्वत २०१६ सन् १९५९ में लिखी गयी है । पुस्तक के प्रस्तावना में लिखा है कि " उस लहर तालाब के चारो तरफ चार कोस के विस्तार में, आज भी बस्ती नहीं हैं। ऐसी स्थिति में तत्काल प्रसूता असहाय एक विधवा स्त्री रात के समय इतने दूर अकेली चल कर कैसे आई होगी ? क्या उसको अपने घर के समीप बालक को छोडने के लिए कोई स्थान नहीं मिला था ?
तीसरा प्रश्न जन्म लेता है, कि इतना स्पष्ट कथानक होने पर भी कबीर को जन्म देने वाली विधवा माँ एवं नाना का नाम नहीं लिया गया। कौन ऐसा था, जो यह जानकर कि, " यह आशीर्वाद से उत्पन्न पुत्र है, कोई अवैध सम्बन्धों का परिणाम नहीं " और यह कि, बालक अद्वितीय होगा तो उसे अपनाये रखकर इतिहास के पन्नों में अपना नाम अमर करना नहीं चाहेगा ? यदि पुत्र अवैध नहीं था तो लोक - लाज किस बात की थी। जब कि उसे तो एक अलौकिक पुत्र और जीवन का सहारा मिलता। उसकी अलौकिकता से प्रभावित लोग उस माता को धन्य - धन्य ही कहते। परन्तु यह अतीत का दुर्भाग्य था कि कबीर के प्राकट्य को अपरिपक्व मानसिकताओं ने अपने पाखंडों के रक्षार्थ सद्गुरु कबीर साहब को कबीर दास बना दिया। जिसका वे सदैव खंडन करते रहे। स्मरण रहे कि जिस रामानंद जी के आशीर्वाद से कबीर के जन्म लेने और अद्वितीय होने की कहानी गढ़ी गयी है, उन्हीं रामानंद जी के द्वारा कबीर को निम्न जाति का होने के कारण गुरू दीक्षा देने से मना कर दिया गया। जिसके कारण कबीर को प्रभात काल में रामानन्द जी के गंगा स्नान मार्ग की सीढियों पर लेटना पड़ा था। गंगा स्नान को जाते समय सीढियों पर लेटे कबीर के ऊपर जब रामानंद जी का पैर पड़ा तो वह राम - राम कहते अपना पैर पीछे हटालिए। इससे यह भी कहा जा सकता है कि, स्वयं रामानंद जी में यातो अद्वितीय पुरुष को पहचानने की क्षमता नहीं थी या फिर सारी कहानी ही यथार्थ से परे है।
सत्य पुरुष के आदि संदेशी सद्गुरु कबीर साहब का सच जानने के लिए सहज होकर ही जाना जा सकता है। कबीर साहब की एक वाणी मंत्र रूप में है " कहत कबीर सुनौ भाई साधो " कबीर साहब कहते है, ऐ भाईयो सुनो और साधो अर्थात करके देखो। सद्गुरु कबीर साहब भी सब कुछ करके ही दिखाते रहे हैं। संसार में सभी धर्मों में जितने भी अवतार का वर्णन है, वे सभी गर्भ वास कर पिंड ( देह ) रूप में आये और जब उनकी देह लीला समाप्त हुई तो पिंड अपने मूल रूप से शेष बचा। सद्गुरु कबीर साहब ही मात्र ऐसे उदाहरण है जिन्होंने जब अपनी लीला मगहर में हिंदू एवं मुसलमान दोनों धर्मो के अनुयायियों के बीच समाप्त की तो पिंड अपने मूल रूप में शेष न होकर दो पुष्प में परिवर्तित हो गया ।
अतः मृत्यु की घटना ने सद्गुरु कबीर साहब कि वाणियों एवं कृत्यों को सच साबित किया और उसके लिए तर्क - कुतर्क का स्थान नहीं छोड़ा। यही कारण भी है कि सद्गुरु की वाणी सभी के दिमाग को नहीं बल्कि हृदय को भी प्रभावित करती है। कबीर साहब के आध्यात्म मार्ग का अनुसरण करने वाले दीक्षित भक्त जन साधना से साहब के सच का संधान करते है। साहब को हमारी कोटि - कोटि साहब वन्दगी।।

सत साहिब जी || 


















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