Wednesday, May 8, 2019

अमृत वाणी गरीब साहिब जी

मृत वाणी गरीब साहिब जी 






रीब, कदली बीच कपूर है, ताहि लखै नहीं कोय।। पत्र सूंघची वर्ण है, तहां वहां लीजै जोय।।
गरीब, गज मोती मस्तक रहै, घूमे फील हमेश। खान पान चारा नहीं, सुनि सतगुरु उपदेश ।।

गरीब, जिनकी अजपा धूनि लगी, तिनका यौही हवाल। सो रापति रघुवीर के, मस्तक जाकै लाल ।।
गरीब, सीप समुंद्र में रहै, बूढें स्वांति समोय। वहां गज मोती जदि भवै, जब चुंबक चिड़िया होय।।

गरीब, चुंबक चिड़िया चुंच भरि, डारै नीर बिरोल। जद गज मोती नीपजे, रतन भरे चहडोल।।
गरीब, चुंबक तो सतगुरु कह्या, स्वांति शिष्य का रूप। बिन सतगुरु निपजै नहीं, राव रंक और भूप।।

गरीब, अधर सिंहासन गगन में, बौहरंगी बरियाम।। जाका नाम कबीर है, कहां धरे से काम ।।
गरीब, धरिया से भी काम है, प्रहलाद भक्त हूँ बूझि।। नरसिंह उतरूया अर्श से, किन्हें न समझी गुझि ।।

गरीब, निराकार आकार होय, कीन्ही संत सहाय। बालक वेदन जगतगुरु, जानत है सब माय ।।
गरीब, इस मौले के मुल्क में, दोनो दीन हमार। एक बामें एक दाहिनें, बीच बसे करतार।।

गरीब, करता आप अलेख है, अविनाशी अल्लाह। राम रहीम करीम है, कीजो सुरति निगाह।।
गरीब, सुरति रूप साहिब धनी, बसै सकल के मांहि।

गरीब, मान बड़ाई कूकरी, डिंभ डफान करंत।। जिन के उर में ना बसू, जम छाती तोरंत ।।
गरीब, बनजारे के बैल ज्यौं, फिरै देश परदेश। जिन के संग न साथ हूँ, जगत दिखावें भेष।।

गरीब, आजिज मेरे आसरे, मैं आजिज के पास। गैल गैल लाग्या फिरौं, जब लगि धरणी अकाश ।।
गरीब, नारद से साधू सती, अति ज्ञाता प्रवीन। एक पलक में बह गये, मन में बाक मलीन।।

गरीब, दुर्वासा अमरीक के, गये ज्ञान गुण डार।। चरण कमल शिक्षा लई, तुम ईश्वर प्राण उधार।।
गरीब, बख्शो प्राण दया करो, पीठ लगाओ हाथ।। उर मेरे में ठंड होय, शीतल कीजे गात।।

गरीब, अमरीक महके तहां, बिहंसे बदन खुलास। तुम ऋषि मेरे प्राण हो, मैं हूँ तुमरा दास ।।
गरीब, चक्र सुदर्शन शीश धरि, द्यौहि भक्ति की आन। मैं चेरा चरणां रहूँ, बख्शो मेरे प्राण ।।

गरीब, चक्र सुदर्शन पकर करि, अमरीक बैठाय।। दुर्वासा पर मेहर करि, चलो भक्ति के भाय।।
गरीब, गण गंधर्व और मुनीजन, तेतीस तत्व सार। अपने जन के कारणै, उतरे बारमबार।।

गरीब, अनंत कोटि औतार हैं, नौ चितवे बुधि नाश। खालिक खेलै खलक में, छै ऋतु बारहमास
गरीब, पीछे पीछे हरि फिरै, आगे संत सुजान। संत करै सोई साच है, च्यारों जुग प्रवान ।।

गरीब, सांईं सरीखे साधु हैं, इन समतुल नहीं और।। संत करें सो होत है, साहिब अपनी टौर।।
गरीब, संतौं कारण सब रच्या, सकल जिमी असमान।। चंद सूर पानी पवन, यज्ञ तीर्थ और दान ।। २०

गरीब, ज्यौं बच्छा गऊ की नजर में, यौं साईं अरु संत ।


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