Monday, May 6, 2019

वाणी गरीब साहिब जी

वाणी गरीब साहिब जी 


v गरीब, कदली बीच कपूर है, ताहि लखै नहीं कोय। पत्र घूघची वर्ण है, तहां वहां लीजै जोय।।
v गरीब, गज मोती मस्तक रहै, घूमे फील हमेश। खान पान चारा नहीं, सुनि सतगुरु उपदेश ।।
v गरीब, जिनकी अजपा धुनि लगी, तिनका यौही हवाल। सो रापति रघुवीर के, मस्तक जाकै लाल ।।
v गरीब, सीप समुंद्र में रहै, बूटें स्वांति समोय।। वहां गज मोती जदि भवै, जब चुंबक चिड़िया होय।।
v गरीब, चुंबक चिड़िया चुंच भरि, डारै नीर बिरोल जद गज मोती नीपजे, रतन भरे चहडोल।।
v गरीब, चुंबक तो सतगुरु कह्या, स्वांति शिष्य का रूप। बिन सतगुरु निपजै नहीं, राव रंक और भूप।।
v गरीब, अधर सिंहासन गगन में, बौहरंगी बरियाम।। जाका नाम कबीर है, कहां धरे से काम ।।
v गरीब, धरिया से भी काम है, प्रहलाद भक्त हूँ बूझि। नरसिंह उतरूया अर्श से, किन्हें समझी गूझि ।।
v गरीब, निराकार आकार होय, कीन्ही संत सहाय।) बालक वेदन जगतगुरु, जानत है सब माय ।।
v गरीब, इस मौले के मुल्क में, दोनो दीन हमार। एक बामें एक दाहिनें, बीच बसे करतार।।
v गरीब, करता आप अलेख है, अविनाशी अल्लाह। राम रहीम करीम है, कीजो सुरति निगाह ।।
v गरीब, सुरति रूप साहिब धनी, बसै सकल के मांहि।
v बिच तकिया महबूब का, परमेश्वर की सौंह।।
v गरीब, भौंहों ऊपरि आँवर है, भौंरौं ऊपर हंस।। एकै जाति जिहान की, वही कन्हैया कंस ।।
v गरीब, तूबा जल में बहि चल्या, बाहर भीतर नीर। पानी से पाला भया, एक सिन्ध है तीर।।
v गरीब, तन तुंबा शुन्य सिन्ध है, बाहर भीतर शून्य। ज्ञान ध्यान की गमि करै, लगै धुनि में धुंनि
v गरीब, श्रवन चिशमें नाक मुख, तालू पर त्रिबैनि। सुरति सहंस मुख गंग है, मध्य महोदधि ऐन ।।
v गरीब, श्रवन चिशमें नाक मुख, तालू नहीं तलाव।। मन महोदधि है नहीं, अलख अलह दरियाव ।।
v गरीब, जैसे तार तंबूर का, घोर करै घर मांहि। ऐसे घट में नाद है, बोलत पावै नांहि ।।
v गरीब, पिंड परे पक्षी उड्या, मन सूवा सति भाय। तन त्रिगुण तीनों तजे, कहो कहां रहे समाय।।
v गरीब, कुंडलनी में कुलफ है, तहां वहां मन का बास। पिंड परै पावै नहीं, ज्यौं फूलन में वास
v गरीब, नाभी नाद गुंजार है, हिरदे कँवल में वास। कंट कॅवल वाणी कहै, त्रिकुटी कँवल प्रकाश
v गरीब, रिंचक नाम निनाम है, सुरति निरति के मध्य। हद्दी भूले हद्दि में, बेहद्दी बेहद्द।। २२
v गरीब, सुरति सुई नाका निरख, तिल में तालिब तीर। चौंसठ सिंध बहे जहां, पट्टण घाट हमीर।।
v गरीब, नयनों में जल कित बसै, आतम ताल समोय। बिन बादल बरषै सदा, दिल दरिया कें धोय।।
v गरीब, हिरदे हरि दरियाव है, नयन घटा बरषत। कारे धौरे बदरा, कोई साधु निरखंत ।।
v गरीब, लोर लहर ऊटै सदा, कारी घटा सुपेद। ब्रह्मा अक्षर क्या लिखै, भीगे च्यारों वेद ।।
v गरीब, कर कलम कागज नहीं, नहीं स्याही नहीं दवात।


v सत साहिब जी ||


No comments:

Post a Comment

thnx for comment