संतो की वाणी
नामदेव जी की वाणी में सतनाम का प्रमाण।। एजी-एजी साधो, सार शब्द मोहे पाया ।।
कलह कल्पना मन की मेटी, भय और कर्म नशाया ।। रूप न रेख कछु वाके, सोहं ध्यान लगाया।
अजर अमर अविनाशी देखे, सिंधु सरोवर न्हाया ।। शब्द ही शब्द भया उजियारा, सतगुरु भेद बताया।
अपने को आपे में पाया, न कहीं गया न आया ।।ज्यों कामनी कंठ का हीरा, आभूषण विसराया।
संग की सहेली भेद बताया, जीव का भरम नशाया ।। जैसे मृग नाभी कस्तूरी, बन-बन डोलत धाया।
नासा स्वांस भई जब आगे, पलट निरंतर आया | कहा कहूं वा सुख की महिमा, गूंगे को गुड़ खाया ।
'नामदेव' कहै गुरु कृपा से, ज्यों का त्यों दर्शाया । कबीर, सोहं सोहं जप मुवे वृथा जन्म गवांया ।
सार शब्द मुक्ति का दाता, जाका भेद नहीं पाया ।।
सत साहिब जी ||
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