Monday, May 20, 2019

वाणी

वाणी




याह पल नहा बााधय, सतगुरु कह विचारा। गरीब, लाख कोस पर जा परे, छुबकी एक सहाब। जाके संपट मिल गये, आया नहीं जुवाब।। गरीब, पायड़ा एक जु पाव का, दीसे सदा हमेश। सहंस वर्ष जहां हो गये, मेटै कौन अंदेश ।। गरीब, घोड़ा जोड़ा सेत है, सेते ताहि पलांन। सतगुरु कू काढ़े जहां, दीन्हा अर्श विमान।। गरीब, कौतूर पहारी पर चढूया, मूसा मांग दीदार। आधा पर्वत जरि गया, आधा कपे यार ।। गरीब, मूसा भाग्या तेज से, ऊपर हूँ करि हाथ।। पर्याा झमक्का तेज का, मूठी बांधे जात ।। गरीब, कौतूर पहारी जरि गई, शुरमा भया पाषाण।।

आधा पर्वत डिगमगै, याह लीला कुरबान।। गरीब, मूसा भाग्या जहां से, जग में रामत कीन। एक बंदा बैठा शिला पर, ध्यान धरे दुरबीन।। गरीब, मूसे से मूसा कहै, एक गुरज गगन के मांहि।। मारि शिला से बैंच करि, यौह उपदेश कहांहि ।। गरीब, मूसे गुरज पकरि लई, संपट शिला के मार। कोटि बहत्तर नीकले, मूसा तहां पुकार।।। गरीब, मूसे से मूसा कहै, सुन मूसे मेरे यार। कौतूर पहारी से भगे, कोटि बहत्तर लार।। : गरीब, एक बंदा करता बंदगी, लिये छुहारा गोप।

छह मंत्र की दई मात्रा, पंड पुत्र प्रवीना ।। ५२ गरीब, पंडु अंध और विदुर सारिखे, व्यास वचन से आये। ब्रह्म तत्त से तारी लागी, मांग न टुकड़े खाये ।। ५३ गरीब, नामदेव की छांनि छिवाई, देवल फेर दिखाया। मूई गऊ तत्काल जिवाई, कदि मांग्या और खाया।। ५४ गरीब, कबीर पुरुष के बालद आई, नौलख बोडी लाहा। केशव से बनजारे जाकै, दे है यज्ञ जुलाहा।। ५५ खान पान बस्ती से आया, हँट हाथ नहीं अंदर धस्या। समझ बूझ नहीं परी धमोरू, किस कारण बन खंड बस्या।। ५६। व्यास पुत्र शुकदेव कें पूछो, जनक विदेही गुरु कीन्हा। तरतीबर बैराग छाडि कर, गृही चरण सिर दीन्हा ।। ५७ ब्रह्मा विष्णु महेश शेष से, यह तो बस्ती मांहि रहैं। नारद पुंडरीक और व्यासा, कागभुसंडा कथा कहैं ।। ५८ बाहर भीतर भीतर बाहर, सुंन बस्ती में बसता है। अकल अभूमी नजर न आया, कहां मुतंगा कसता है।। ५६ । सेली शींगी जहरा मुहरा, गुदरी कै चींधी लाई । दौहबर कोट ढाहि नहीं दीन्हा, अटी नहीं त्रिगुण खाई ।। ६० सुरति स्वरूपी नाद बजत हैं, निरति निरंतर नाचत हैं। मात पिता जननी नहीं जाया, कहो भेष कदि काछत हैं।। ६१। गोरख जनक विदेही यौही है, ध्रुव प्रहलाद कबीर कला। चिदानंद चेतन अविनाशी, काहे पूजै सुंन शिला।। ६२ सौ करोड़ मंडलीक तास के, शूरे सावंत दल मांहीं । रावण राम नाम एकै है, समझ देख ले मन मांहीं ।। ६३ जो समझे सो राम जपत हैं, अन समझै रावण रोवै।। गरीबदास याह चूक धरौं धुर, भूना बीज बहुरि बोवै ।। ६४
| अथ जम का अंग गरीब, जम किंकर के धाम कें, सांईं ना ले जाय। बड़ी भयंकर मार है, सतगुरु करें सहाय ।। १।। गरीब, कारे कारे कंगरे, लीला जम का धाम ।। जेते जामें जीव है, नहीं चैन विश्राम ।। २।। गरीब, है तांबे की धरतरी, चौरासी मध्य कुण्ड।

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