बीजक ज्ञान
सत साहेब जी
SAT KABIR
अगर किसी ने भी अभी तक गुरु बंदगी स्वीकार नहीं की हे तो आप सभी से निवेदन हे गुरु बनाने से पहले कबीर बीजक को पढ़े उससे आपका ज्ञान का विस्तार तो होगा ही साथ में गुरु महिमा का भी ज्ञान हो जायगा | कबीर
को पाना सहज हे कबीर साहिब के ज्ञान को समझ पाना बेहद मुश्किल शुरू में आपको कुछ भी समज नहीं आएगा | जब आप आगे बढ़ते जायँगे ज्ञान खुद ही समज आना शुरू हो जायगा ||
मुझसे बहुत से भाई पूछते हे पूर्ण सतगुरु की क्या पहचान हे कैसे पाय पूर्ण सतगुर को आज के गुरुओ का
हाल तो आप सभी जानते हो इसलिए जीव बड़ा मझदार में हे स्थिति कुछ ऐसी बनी हुई हे की कोई कुछ भी
किसी को समझा दे जीव वही सत्य मान कर उन्ही से नाम दीक्षा ले लेता हे ||
फिर ऐसे हे धीरे धीरे बहुत साल गुजर जाते हे कोई आध्यात्मिक विकास नहीं होता जीव खुद को अकेला सा महसूस करता हे उसको अब यह समझ नहीं आता त्रुटि कहाँ हे मेरी भक्ति में या गुरु बनाने में और जब तो
उसको ये समझ में आता हे की मुझे पूर्ण सतगुरु मिला ही नहीं तब तक वो उस पंथ का एक हिस्सा बन
चूका होता हे जिससे ऐसी परिस्थिति बन जाती हे ना वो छोड़ सकता हे ना ही सत्य मार्ग पर आगे बढ़ सकता हे
उसको लगातार यही समझाया जाता हे परमात्मा को पाना सहज थोड़ी न हे और जीव का लगभग सारा जीवन
एक खोज बन जाता हे इसलिए प्यारे भाइयो गुरु धारण करने से पहले खुद को समझो और बीजक को पढ़ो
या हमे निचे कमेंट बॉक्स में बताओ हमारी टीम फ्री पुस्तक सेवा करती है हम इसे आपका परोपकार समझेंगे
की मालिक की सेवा का कुछ अवसर मिला ||
| ए जियरा तें अमर लोक को, पद्य काल बस आई हो।
मनै सरूपी देव निरंजन, तोहि राख्यौ भरमाई हो । | पाँच पचीस तीन को पिंजरा, तामें तो को राखै हो।
ता को बिसरि गई सुधि घर की, महिमा आपन गावै हो। निरंकार निरगुन है माया, तो को नाच नचावै हो।
चमर दृष्टि को कुलफी दीन्हो, चौरासी भरमावै हो।
चार वेद जा की है स्वासा, ब्रह्मा अस्तुति गावै हो। सो कथि ब्रह्मा जगत भुलाये,
तेहि मारग सब धावै हो । जोग जाप नेम ब्रत पूजा, बहु परपंच पसारा हो।
जैसे बधिक ओट टाटी के, दे विस्वासै चारा हो ।
सतगुरु पीव जीव के रक्षक, ता के करो मिलाना हो। | जा से मिले परम सुख उपजे, पावो पद निर्वाणा हो।
जुगन जुगन हम आय जनाई, कोई कोई हंस हमारा हो। कहे कबीर तहाँ पहुँचाऊँ, सत्त पुरुष दरखारा हो ।
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छिलकत थोथे प्रेम सों, मारे पिचकारी गात। के लीन्हों बसि आपने, फिर फिर चितवत जात। ज्ञान डांग ले रोपिया, त्रिगुण दियो है साथ। शिवसन ब्रह्मा लेन कहो है, और की केतिक बात। एक ओर सुन नर मुनि ठाड़े, एक अकेली आप। दृष्टि परे उन काहु न छाड़े, कै लीन्हों एकै धाप। जेते थे तेते लिए, घूघट माहिं समोय। कज्जल वाकी रेख है, अदग गया नहिं कोय। इन्द्र कृष्ण द्वारे खड़े, लोचन ललचि लजाय। कहहिं कबीर ते ऊबरे, जाहि न मोह समाय।
चांचर-2 । जारो जग का नेहरा, मन बौरा जामें सोग सन्ताप, समुझि मन बौरा हो। तन धन से क्या गर्भ सी, मन बौरा भस्म कीन्ह जाके साज, समुझि मन बौरा बिना नेव का देव घरा, मन बौरा बिन कहगिल की ईंट, समुझि मन बौरा कालबूत की हस्तिनी, मन बौरा चित्र रचो जगदीश, समुझि मन बौरा । काम अन्ध गज बशि परे, मन बौरा अंकुश सहियो सीस, समुझि मन बौरा मर्कट मूठी स्वाद की, मन बौरा लीन्हों भुजा पसारि, समुझि मन बौरा । छूटन की संशय परी, मन बौरा घर घर नाचेउ द्वार, समुझि मन बौरा ऊंच नीच समझेउ नहीं, मन बौरा घर घर खायो डांग, समुझि मन बौरा । ज्यो सुवना ललनी गुह्यो, मन बौरा।
पछापछी के कारने, सब जग रहा भुलान। निर्पक्ष होय के हरि भजै, सोई संत सुजान॥
बड़े गये बड़ापने, रोम-रोम हंकार। सतगरु के परचै बिना, चारों बरन चमार।
माया तजे क्या भया, जो मान तजा नहिं जाय। जेहि माने मुनिवर ठगे, सो मान सबन को खाय।।
माया के झक जग जरे, कनक कामिनी लाग। कहहिं कबीर कस बांचिहो, रुई लपेटी आग।।
माया जग सांपिनि भई, विष ले पैठि पताल। सब जग फन्दे फन्दिया, चले कबीरू काछ॥
सांप बिच्छू का मंत्र है, माहुरहू झारा जाय। विकट नारि के पाले परे, काढि कलेजा खाय॥
तामस केरे तीन गुण, भंवर लेइ तहां बास। एकै डारी तीन फल, भांटा ऊख कपास।।
मन मतंग गइयर हुने, मनसा भई सचान। जंत्र-मंत्र माने नहीं, लागी उड़ि-उड़ि खान॥
मन गयंद माने नहीं, चले सुरति के साथ। महावत बिचारा क्या करे, जो अंकुश नाहीं हाथ॥
ई माया है चूहड़ी, औ चूहड़ों की जोय। बाप पूत अरुझाय के, संग न काहु के होय॥
कनक कामिनी देखि के, तू मत भूल सुरंग। मिलन बिछुरन दुहेलरा, जस केंचुलि तजत भुवंग॥
माया केरी बसि परे, ब्रह्मा-विष्णु महेश। नारद शारद सनक सनन्दन, गौरी पूत गणेश
पीपरि एक जो महागंभानि,ताकर मर्म कोइ नहिं जानि। रिलबायफल कोइ न पाय, खसम अछत बहुपीपरे जाय
सत कबीर की दया ||
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