अगम की वाणी
अगम की वाणी
सत साहिब
मात पिता सुत इस्तरी , आलस बन्धू कानि साधु दरश को जब चलै , ये अटकावे आनि।।
साधु शब्द समुद्र है , जामें रतन भराय। मन्द भाग मुट्ठी भरै , कंकर हाथ लगाय।।
संगत कीजै साधु की , कभी न निष्फल होय। लोहा पारस परस ते , सो भी कंचन होय।। 2
कई बार नहिं कर सके , दोय बख्त करि लेय। कबीर साधु दरश ते , काल दगा नहि देय 1
साधु बिरछ सतज्ञान फल , शीतल शब्द विचार। जग में होते साधु नहिं , जर मरता संसार।
साधु मिले यह सब टलै , काल - जाल जम चोट। शीश नवावत ढहि परै , अघ पापन के पोट 1
साधु भूखा भाव का , धन का भूखा नाहिं। धन का भूखा जो फिरै , सो तो साधु नाहि॥ 1
दया गरीबी बन्दगी , समता शील सुभाव। ये ते लक्षण साधु के , कहैं कबीर सद्भाव ॥
छठे मास नहिं करि सकै , बरस दिना करि लेय।। कहैं कबीर सो भक्तजन , जमहिं चुनौती देय।।
कंचन दीया करन ने , द्रौपदी दीया चीर। जो दीया सो पाइया , ऐसे कहैं कबीर॥
दोय बखत नहिं करि सके , दिन में करु इक बार। कबीर साध दरश ते , उतने शौच ॥ i
आपा राखि परमोधिये , सुनै ज्ञान अकराथि। कटै कन बाहिरी , कछू न आवै हाथि॥
जौरे साखी कहै , साधन पड़ि गयी रोस। ढा जल पीवै नहीं , काढ़ि पीवन की होस॥
कथनी थोथी जगत में , करनी उत्तम सार।। कहैं कबीर करनी भली , उतरै भोजल पा॥
कथनी मीठी खांड सी , करनी विष की लोय। कथनी तजी करनी करै , विष से अमृत होय॥
पढ़ि पढ़ि के समुझावई, मन नहिं धारै धीर। | रोटी का संसै पड़ा, यौं कह दास कबीर॥
कथनी कांची होय गयी, करनी करी न सार। स्रोता वक्ता मरि गया, मूरख अनंत अपार॥
कथनी बदनी छाड़ि दे , करनी सों चित लाय। | नर सो जल प्याये बिना , कबहु प्यास न जाय।।
कथनी कथै तो क्या हुआ , करनी ना ठहराय। कालबूत का कोट ज्यौं , देखत ही ढहि जाय॥
॥ साखी लाय बनाय के , इत उत अच्छर काटि। कहैं कबीर कब लगि जिये , जूठी पत्तर चाटि॥
कथनी के सूरे घने , थोथै बांधै तीर। बिरह बान जिनके लगा , तिनके बिकल सरीर॥
कथनी कथि फूला फिरै , मेरे होयै उचार। भाव भक्ति समझ नहीं , अंधा मूढ़ गंवार॥
पानी मिलै न आप को , औरन बकसत छीर। आपन मन निहचल नहीं , और बंधावत धीर॥
करनी गर्व निवारनी , मुक्ति स्वारथी सोय। कथनी तजि करनी करै , तब मुक्ताहल होय॥
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