Thursday, May 9, 2019

समर्थ सद्गुरु ज्ञान

                

   
कबीर  , अक्षर पुरुष एक पेड़ हे,निरंजन वही डार
त्रिदेवा (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) शाखा पात भया संसार ।।


कबीर, तीन देवको सब कोई ध्यावे, चौथा देवका मरम पावै
चौथा छाडि पंचम ध्यावै, कहै कबीर सो हमरे आवै ।।


कबीर, तीन लोक सब राम जपत है, जान मुक्ति को धाम।
रामचन्द्र वसिष्ठ गुरु किया, तिन कहि सुनायो नाम।


कबीर, ओंकार नाम ब्रह्म (काल) का यह कर्ता मति जानि
सांचा शब्द कबीर का परदा माहिं पहिचानि ।।


कबीर, राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नाहीं संसार।।
जिन साहब संसार किया, सो किनहुन जनम्यां नारि


कबीर, चार भुजाके भजनमें, भूलि परे सब संत ।।
कबिरा सुमिरै तासु को, जाके भुजा अनंत ।।


कबीर, वाशिष्ट मुनि से तत्वेता ज्ञानी, शोध कर लग्न धरै।।
सीता हरण मरण दशरथ को, बन बन राम फिरै ।।


कबीर, समुद्र पाटि लंका गये, सीता को भरतार ।।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार


कबीर, गोवर्धन कृष्ण जी उठाया, द्रोणागिरि हनुमंत
शेष नाग सब सृष्टी उठाई, इनमें को भगवंत


गरीब, दुर्वासा कोपे तहां, समझ आई नीच।
छप्पन कोटि यादव कटे, मची रूधिर की कीच।।

कबीर, कह कबीर चित चेतहू, शब्द करौ निरुवार
श्री रामचन्द्र को कर्ता कहत हैं, भूलि परयो संसार।।


कबीर, जिन राम कृष्ण निरंजन किया, सो तो करता न्यार।।
अंधा ज्ञान बूझई, कहै कबीर बिचार ।।


कबीर, तीन गुणन (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) की भक्ति में, भूल पड़यो संसार
कहै कबीर निज नाम बिना, कैसे उतरो पार ।।

कबीर, काटे बंधन विपति में, कठिन किया संग्राम
चीन्हों रे नर प्राणियां, गरुड बडो की राम ।।

कबीर, तीन गुणन की भक्ति में, भूलि परयौ संसार।।
कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरे पार ।।




सुरापान मद्यमांसाहारी, गमन करै भोगैपर नारी सतर जन्म कटत हैं शीशं, साक्षी साहिब है जगदीश।।
परद्वारा स्त्री का खोलै, सतर जन्मअंधा होवैडोले।मदिरा पीवैकड़वा पानी, सत्तर जन्म श्वान के जानी ।।


गरीब, हुक्का हरदम पिवते, लाल मिलावें धूर | इसमें संशय है नहीं, जन्म पिछले सूर।।
गरीब, सो नारी जारी करै, सुरा पान् सौ बार | एक चिलम हुक्का भरै, डुबै काली धार ।।
गरीब, सूर गऊ कुं खात है, भक्ति बिहुनें राड। भांग तम्बाखू खा गए, सो चाबत हैं हाड
गरीब, भांग तम्बाखू पीव हीं, सुरा पान सैं हेत। गौस्त मट्टी खाय कर, जंगली बनें प्रेत
| गरीब, पान तम्बाखू चाब हीं, नास नाक में देत सो तो इरानै गए, ज्यूं भड़भूजे का रेत ।।
गरीब, भांग तम्बाखू पीवहीं, गोस्त गला कबाब मोर मृग कुंभखत हैं, देगें कहां जवाब 1

गरीब, पर द्वारा स्त्री का खोलै सत्तर जन्म अन्धा हो डोलै
सुरापान मद्य मांसाहारी ! गवन करे भोर्गे पर नारी ।। सत्तर जन्म कटत हैं शीशं साक्षी साहिब है जगदीशं |


पर नारी ना परसियों, मानो वचन हमारे भवन चर्तुदश तास सिर, त्रिलोकी का भार ।। पर नारी ना परसियो, सुनो शब्द सलतंत। धर्मराय के खंभ से, अर्धमुखी लटकंत 


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